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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
वहां यानी रुचक पर्वत के कूटों पर महाऋद्धिशाली एक पल्योपम की स्थिति वाली आठ दिशाकुमारियां रहती हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं - नन्दुत्तरा, नन्दा, आनन्दा, नन्दिवर्द्धना, विजया, वैजयंती, जयन्ती और अपराजिता ॥ ४ ॥ . जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के दक्षिण में रुचकवर पर्वत पर आठ कूट कहे गये हैं । यथा - कनक, काञ्चन, पद्म, नलिन, शशी, दिवाकर, वैश्रमण और वैडूर्य । ये आठ कूट रुचकवर पर्वत के दक्षिण में हैं ॥५॥ ___वहाँ यानी रुचकवर पर्वत के कूटों पर महाऋद्धिशाली एक पल्योपम की स्थिति वाली आठ दिशाकुमारियाँ रहती हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं - समाधारा, सुप्रतिज्ञा, सुप्रबुद्धा, यशोधरा, लक्ष्मीवती, शेषवती, चित्रगुप्ता और वसुन्धरा ॥ ६ ॥
जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के पश्चिम में रुचकवर पर्वत पर आठ कूट कहे गये हैं । यथा - स्वस्तिक, अमोघ, हिमवान्, मंदर, रुचक, रुचकोत्तम, चन्द्र और सुदर्शन ॥७॥ ____वहाँ यानी उपरोक्त रुचकवर पर्वत के कूटों पर महाऋद्धिशाली एक पल्योपम की स्थिति वाली आठ दिशाकुमारियां रहती हैं । उनके नाम ये हैं - इला देवी, सुरा देवी, पृथ्वी, पद्मावती, एकनासा, नवमिका, सीता और भद्रा ॥८॥ ___जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के उत्तर में रुचकवर पर्वत पर आठ कूट कहे गये हैं । यथा - रत्न, रत्नोच्चय, सर्वरत्न, रत्नसञ्चय, विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित ॥९॥
- वहाँ पर महाऋद्धि शाली एक पल्योपम की स्थिति वाली आठ, दिशाकुमारी देवियाँ रहती हैं । उनके नाम इस प्रकार हैं - अलंबूषा, मृगकेशी, पुण्डरीकिणी, वारुणी, आशा, सर्वगा श्री और ही ॥१०॥ ___ अधोलोक में रहने वाली आठ दिशाकुमारी देवियों कही गई हैं । उनके नाम इस प्रकार हैं - भोगंकरा, भोगवती, सुभोगा, भोगमालिनी, सुवत्सा, वत्समित्रा, वारिसेना और बलाहका ॥ ११ ॥
ऊर्ध्वलोक में रहने वाली आठ दिशाकुमारी देवियों कही गई हैं । उनके नाम इस प्रकार हैं - मेघंकरा, मेघवती, सुमेघा, मेघमालिनी, तोयधारा, विचित्रा, पुष्पमाला और अनिन्दिता ॥ १२ ॥
सौधर्म से सहस्रार तक यानी पहले देवलोक से आठवें देवलोक तक तिर्यञ्च भी उत्पन्न होते हैं। इन आठ देवलोकों में आठ इन्द्र कहे गये हैं। यथा - शक्रेन्द्र यावत् सहस्रारेन्द्र इन आठ इन्द्रों के आठ परियानक यानी जिनमें बैठ कर इन्द्र इधर उधर जाया करते हैं वे विमान कहे गये हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं - पालक, पुष्पक, सोमनस, श्रीवत्स, नन्दावर्त, कामगम, प्रीतिमन और विमल।
विवेचन - जब तीर्थंकर भगवान् का जन्म होता है तब ५६ दिशाकुमारी देवियों का आसन चलित होता है। तब वे देवियाँ अवधि का उपयोग लगाकर देखती हैं कि हमारा आसन चलित क्यों हुआ? तब उन्हें मालूम होता है कि - तीर्थंकर भगवान् का जन्म हुआ है। हम दिशाकुमारियों का यह
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