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स्थान
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६. नाम - जिस कर्म से आत्मा, गति आदि नाना पर्यायों का अनुभव करे (शरीर आदि बने या जो जीव के अमूर्तत्व गुण को प्रगट न होने दे) उसे 'नाम कर्म' कहते हैं। जैसे चित्रकार अनेक प्रकार के चित्र बनाता है।
७. गोड- जिस कर्म के उदय से जीव, उच्च-नीच कुलों में उत्पन्न हो, उसे 'गोत्र कर्म' कहते हैं। जैसे - कुंभकार छोटे-बड़े बरतन बनाता है।
८. अन्तराय - जिस कर्म से दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य (शक्ति) में विघ्न उत्पन्न हो, . उसे 'अन्तराय कर्म' कहते हैं। जैसे राजा की आज्ञा होने पर भी भंडारी दान प्राप्ति में बाधक होता है।
मायावी और आलोचना अहिं ठाणेहिं माई मायं कट्ट णो आलोएग्जा, णो पडिक्कमेजा, णो णिंदेग्जा, णो गरहेजा, णो विउद्देज्जा, जो विसोहेज्जा, णो अब्भुटेज्जा, णो पडिवण्जेज्जा तंजहा - करिसुवाहं, करेमि वाहं, करिस्सामि वाह; अकित्ती वा मे सिया, अवण्णे वा मे सिया, अवणए वा सिया, कित्ती वा मे परिहाइस्सइ, जसे वा मे परिहाइस्सइ। अहिं ठाणेहिं माई मायं कटु आलोएग्जा जाव पडिवजेजा तंजल - माइस्स णं अस्सिं लोए गरहिए भवइ, उववाए गरहिए भवइ, आजाई गरहिया भवइ, एगमवि माई मायं कडुणो आलोएग्जा जाव णो पडिवग्जेज्जा णत्थि तस्स आराहणा, एगमवि माई मा कट्ट आलोएडा जाव पडिवजेजा अस्थि तस्स आराहणा। बहुओ वि माई मायं कट्टु णो आलोएग्जा जाव णो पडिवज्जेजा णस्थि तस्स आराहणा बहुओ वि माई मायं कटु आलोएग्जा जाव पडिवग्जेज्जा अस्थि तस्स आराहणा, आयरियउवझायस्स वा मे अइसेसे णाणदंसणे समुप्पण्जेज्जा से य णं ममं आलोएण्जा माई णं एस ।माई णं मायं कटु से जहाणामए अयागरेइ वा, तंबागरे वा, तउआगरेइ वा, सीसागरेइ वा, रुप्पागरेइ वा, सुवण्णागरेइ वा, तिलागणीइ वा, तुसागणीइ वा, बुसागणीइ वा, णलागणीइ वा, दलागणीइ चा, सोडियालिच्छाणिवा, भंडियालिच्छाणि वा, गोलियालिच्छाणि वा, कुंभारावाएइ वा कवेल्लुवावाएइ वा, इहावाएइ वा, जंतवाडउचुल्लीइ वा, लोहारंबरिसाणि वा, तत्ताणि समजोइभूयाणि किंसुकफुल्लसमाणाणि, उक्कासहस्साइं विणिम्मुयमाणाई विणिम्मुयमाणाई जालासहस्साई पमुंचमाणाई पर्मुचमाणाई, इंगालसहस्साई परिकिरमाणाइं परिकिरमाणाई
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