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स्थान ७
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अन्तरञ्जिका पुरी में हुआ था । ७. अबद्धिक - इस मत की मान्यता है कि कर्मों का जीव के साथ बन्ध नहीं होता है किन्तु सर्प और सर्प की कंचुकी के समान स्पर्श मात्र होता है । इस मत का धर्माचार्य - प्रवर्तक गोष्ठामाहिल्ल दशपुर नगर में हुआ था ।
विवेचन - निह्नव - नि पूर्वक हनु धातु का अर्थ है अपलाप करना। जो व्यक्ति किसी महापुरुष के सिद्धान्त को मानता हुआ भी किसी विशेष बात में विरोध करता है और फिर स्वयं एक अलग मत का प्रवर्तक बन बैठता है उसे निह्नव कहते हैं। भगवान् महावीर के शासन में सात निह्नव हुए - १. जमाली २. तिष्यगुप्त ३. आषाढ ४. अश्व मित्र ५. गंग ६. षडुलूक (रोहगुप्त) ७. गोष्ठामाहिल्ल। भगवान् के केवलज्ञान के बाद निम्न वर्षों के पश्चात् क्रमशः ये निह्नव हुए - १४, १६, २१४, २२०, २२८, ५४४, ५८४।
कर्म का अनुभाव, सात तारों वाले नक्षत्र .. सायावेयणिज्जस्स कम्मस्स सत्तविहे अणुभावे पण्णत्ते तंजहा - मणुण्णा सद्दा, मणुण्णा रूवा, जाव मणुण्णा फासा, मणोसुहया, वइसुहया । असायावेयणिज्जस्स णं कम्मस्स सत्तविहे अणुभावे पण्णत्ते तंजहा - अमणुण्णा सहा जाव वइदुहया । मघा णक्खत्ते सत्त तारे पण्णत्ते । अभिईयाइया सत्त णक्खत्तां पुव्वदारिया पण्णत्ता तंजहा - अभिई, सवणो, धणिट्ठा, सत्तभिसया, पुव्वा भद्दवया, उत्तरा भद्दवया, रेवई। अस्सिणीयाइया सत्त णक्खा दाहिणदारिया पण्णत्ता तंजहा - अस्सिणी, भरणी, कत्तिया, रोहिणी, मिगसरे, अद्दा, पुणव्वसू । पुस्साइया सत्त णक्खत्ता अवरदारिया पण्णत्ता तंजहा - 'पुस्सो, असिलेस्सा, मघा, पुव्वाफग्गुणी, उत्तराफग्गुणी, हत्थो, चित्ता । साइया णं सत्त णक्खत्ता उत्तरदारिया पण्णत्ता तंजहा - साइ, विसाहा, अणुराहा, जेट्ठा, मूलो, पुव्वासाढा, उत्तारासाढा॥८२॥
कठिन शब्दार्थ - अणुभावे - अनुभाव-उदय, भणोसुहया - मन का सुख, वइसुहया - वचन का । सुख, पुव्वदारिया - पूर्व द्वार वाले, दाहिणदारिया - दक्षिण द्वार वाले, अवरदारिया - पश्चिम द्वार वाले, : उत्तरदारिया - उत्तर द्वार वाले ।
. भावार्थ - सातावेदनीय कर्म का अनुभाव यानी उदय सात प्रकार का कहा गया है यथा - मनोज्ञ शब्द, मनोज्ञ रूप, मनोज्ञ गन्ध, मनोज्ञ रस, मनोज्ञ स्पर्श, मन का सुख, वचन का सुख । असातावेदनीय । कर्म का अनुभाव यानी उदय सात प्रकार का कहा गया है यथा - अमनोज्ञ शब्द, अमनोज्ञ रूपं, अमनोज्ञ गन्ध, अमनोज्ञ रस, अमनोज्ञ स्पर्श, मन का दुःख और वचन का दुःख । मघा नक्षत्र सात तारों वाला कहा गया है । अभिजित आदि सात नक्षत्र पूर्व द्वार वाले कहे गये हैं यानी ये सात नक्षत्र पूर्व दिशा से
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