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स्थान ७ .
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२. दर्शन विनय - इस के दो भेद हैं - सुश्रूषा और अनाशातना। दर्शनगुणाधिकों की सेवा करना, स्तुति आदि से उनका सत्कार करना, सामने आते देख कर खड़े हो जाना, वस्त्रादि के द्वारा सन्मान करना, 'पधारिए, आसन अलंकृत कीजिए' इस प्रकार निवेदन करना, उन्हें आसन देना, उनकी प्रदक्षिणा करना, हाथ जोड़ना, आते हों तो सामने जाना, बैठे हों तो उपासना करना, जाते समय कुछ दूर पहुंचाने जाना सुश्रूषा विनय है। अनाशातना विनय - यह पैंतालीस तरह का है। अरिहन्त, अर्हत्प्रतिपादित धर्म, आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, कुल, गण, संघ, अस्तिवादरूप क्रिया, सांभोगिकक्रिया, मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान इन पन्द्रह स्थानों की आशातना न करना, भक्तिबहुमान करना तथा गुणों का कीर्तन करना। धर्म संग्रह में भक्ति, बहुमान और वर्णवाद ये तीन बातें हैं। हाथ जोड़ना आदि बाह्य आचारों को भक्ति कहते हैं। हृदय में श्रद्धा और प्रीति रखना बहुमान है। गुणों को ग्रहण करना और उनकी प्रशंसा करना वर्णवाद है। .. - ३. चारित्र विनय - सामायिक आदि चारित्रों पर श्रद्धा करना, काया से उनका पालन करना तथा भव्य प्राणियों के सामने उनकी प्ररूपणा करना चारित्र विनय है। सामायिक चारित्र विनय, छेदोपस्थापनिक चारित्र विनय, परिहारविशुद्धि चारित्र विनय, सूक्ष्मसंपराय चारित्र विनय और यथाख्यात चारित्र विनय के भेद से इसके पांच भेद हैं।
४. मन विनय - आचार्यादि का मन से विनय करना, मन की अशुभप्रवृत्ति को रोकना तथा उसे शुभ प्रवृत्ति में लगाना मन विनय है। इसके दो भेद हैं-प्रशस्त मन विनय तथा अप्रशस्त मन विनय। इनके भी प्रत्येक के सात सात भेद हैं।
५. वचन विनय - आचार्यादि की वचन से विनय करना, वचन की अशभ प्रवृत्ति को रोकना तथा उसे शुभ व्यापार में लगाना वचन विनय है। इसके भी मन की तरह दो भेद हैं। फिर प्रत्येक के सात सात भेद हैं। .
इ.काय विनय - आचार्यादि की काया से विनय करना. काया की अशभ प्रवत्ति को रोकना तथा उसे शुभ व्यापार में प्रवृत्त करना काय विनय है। इसके भी मन विनय की तरह भेद हैं। ..७. उपचार विनय - दूसरे को सुख प्राप्त हो, इस तरह की बाह्य क्रियाएं करना उपचार विनय है। इसके भी सात भेद हैं।
प्रशस्त मन विनय के ७ भेद, अप्रशस्त मन विनय के ७ भेद, प्रशस्त वचन विनय के ७ भेद, अप्रशस्त वचन विनय के ७ भेद, प्रशस्त काय विनय के ७ भेद, अप्रशस्त काय विनय के ७ भेद और लोकोपचार विनय के ७ भेदों का वर्णन भावार्थ से स्पष्ट है।
- सात समुद्घात सत्त समुग्घाया पण्णत्ता तंजहा - वेयणासमुग्याए, कसायसमुग्याए,
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