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स्थान ७
१९७ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 विणए सत्तविहे पण्णत्ते तंजहा - अब्भासवत्तियं, परच्छंदाणुवत्तियं, कज्जलं, कयपडिकिइया, अत्तगवेसणया, देसकालण्णुया, सव्वत्येसु य अपडिलोमया॥७९॥ ___ कठिन शब्दार्थ - वयणविकप्पे - वचन विकल्प, आलावे - आलाप, अणालावे - अनालाप, उल्लावे - उल्लाप, अणुलावे - अनुल्लाप, संलावे - संलाप, पलावे - प्रलाप, विप्पलावे - विप्रलाप, लोगोवयार विणए - लोकोपचार विनय, पसत्य मणविणए - प्रशस्त मन विनय, अपावए - अपाप, असावजे - असावध, णिरुवक्केसे - निरुपक्लेश, अणण्हयकरे - अनास्रवकर, अच्छविकरे - अक्षणिकर, अभूयाभिसंकणे - अभूताभिशंकन, आउत्तं - आयुक्त-सावधानी पूर्वक, णिसीयणं - निषीदन-बैठना, तुयट्टणं - त्वग्वर्तन-शयन, उल्लंघणं - उल्लंघन, पल्लंघणं - प्रलंघन, सबिंदियजोगजुंजणया- सर्वेन्द्रिय योग योजनता, अब्भासवत्तियं - अभ्यास वर्तित्व, परच्छंदाणुवत्तियंपरच्छन्दानुवर्तित्व, कज्जहेडं - कार्यहेतु, कयपडिकिइया - कृत प्रतिकृतिता, अत्तगवेसणया - आर्त गवेषणता, देस-कालण्णुया- देश कालज्ञता, सव्वत्थेसु अपडिलोमया - सर्वार्थ अप्रतिलोमता।
भावार्थ - सात प्रकार का वचन विकल्प कहा गया है यथा - आलाप - थोड़ा यानी परिमित बोलना । अनालाप - बुरे वचन बोलना । उल्लाप - किसी बात का व्यङ्ग रूप से वर्णन करना । अनुल्लाप - व्यङ्ग रूप से बुरा वर्णन करना । संलाप - आपस में बातचीत करना । प्रलाप - निरर्थक या अंटशंट भाषण करना । विप्रलाप - तरह तरह से निष्प्रयोजन भाषण करना । . विनय - जिससे आठ कर्म रूपी मैल दूर हो वह विनय है । वह सात प्रकार का कहा गया है यथा - ज्ञान विनय - ज्ञान और ज्ञानियों का विनय करना, विधिपूर्वक ज्ञान ग्रहण करना तथा अभ्यास करना । दर्शन विनय - दर्शन और दर्शनधारी पुरुषों की सेवा भक्ति करना एवं उनकी आशातना न करना । चारित्रविनय - सामायिक आदि चारित्रों पर श्रद्धा करना, काया से उनका पालन करना तथा भव्य प्राणियों के सामने उनकी प्ररूपणा करना । मनविनय - मन की अशुभ प्रवृत्ति को रोकना तथा शुभप्रवृत्ति में लगाना । वचनविनय - वचन की अशुभ प्रवृत्ति को रोकना तथा उसे शुभ प्रवृत्ति में लगाना । कायविनय - काया से अशुभ प्रवृत्ति को रोकना तथा शुभप्रवृत्ति में लगाना । लोकोपचार विनय - दूसरे को सुख प्राप्त हो, इस तरह की बाह्य क्रियाएं करना लोकोपचार विनय है । प्रशस्त मन विनय - अशुभ का त्याग कर शुभ बातों का विचार करना प्रशस्त मन विनय है । वह सात प्रकार का कहा गया है यथा - अपाप - पापरहित मन का व्यापार । असावदय - क्रोधादि दोष रहित मन की प्रवृत्ति । अक्रिय - कायिकी आदि क्रियाओं में आसक्ति रहित मन की प्रवृत्ति । निरुपक्लेश - शोकादि उपक्लेश रहित मन का व्यापार । अनास्रावकर- आस्रव रहित मन की प्रवृत्ति । अक्षपिकर - अपने तथा दूसरे को पीड़ित न करने रूप मन की प्रवृत्ति । अभूताभिशङ्कन - जीवों को भय न उत्पन्न करने वाला मन का व्यापार । अप्रशस्त मन विनय सात प्रकार का कहा गया है यथा - पापक - पाप वाले कार्य में मन
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