SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९६ श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 पदाति अनीक के अधिपति देव के पहले समूह में अठाईस हजार देव हैं । धरणेन्द्र के समान महाघोष तक सभी इन्द्रों के पदातिअनीक के अधिपति के पहले समूह में अठाईस अठाईस हजार देव हैं और आगे आगे के समूह में पूर्व समूह से दुगुने दुगुने देव हैं । इन इन्द्रों के पदाति अनीक के अधिपति देवों के नाम भिन्न भिन्न हैं वे पहले कह दिये गये हैं । देवों के इन्द्र शक्रेन्द्र के पदाति अनीक के अधिपति हरिणैगमेषी देव के सात समूह कहे गये हैं यथा - पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा, पांचवां, छठा और सातवां समूह । यावत् अच्युत नामक बारहवें देवलोक तक सभी इन्द्रों के सात सात समूह कहे गये हैं । . इन सभी इन्द्रों के पदातिअनीक के अधिपति देवों के नाम भिन्न भिन्न हैं वे पहले कह दिये गये हैं । उनके पहले समूह के देवों का परिमाण इस गाथा से जानना चाहिए - ___.. शक्रेन्द्र के चौरासी हजार, ईशानेन्द्र के अस्सी हजार, सनत्कुमारेन्द्र के बहत्तर हजार, माहेन्द्र के सित्तर हजार, ब्रह्मलोकेन्द्र के साठ हजार, लान्तकेन्द्र के पचास हजार, महाशुक्रेन्द्र के चालीस हजार, सहस्रारेन्द्र के तीस हजार, नववें दसवें देवलोक के इन्द्र प्राणतेन्द्र के बीस हजार और ग्यारहवें बारहवें देवलोक के इन्द्र अच्चुतेन्द्र के पदातिअनीक के अधिपति लघुपराक्रम के दस हजार सामानिक देव हैं । आगे आगे के समूहों में पूर्व पूर्व के समूह से दुगुने दुगुने देव हैं । यावत् छठे समूह में जितने देव हैं उनसे दुगुने देव सातवें समूह में होते हैं। वचन विकल्प, विनय भेद सत्तविहे वयण विकप्पे पण्णत्ते तंजहा - आलावे, अणालावे, उल्लावे, अणुल्लावे, संलावे, पलावे, विप्पलावे । सत्तविहे विणए पण्णत्ते तंजहा - णाणविणए, दंसणविणए, चरित्तविणए, मणविणए, वइविणए, कायविणए, लोगोवयारविणए । पसत्य मण विणए सत्तविहे पण्णत्ते तंजहा - अपावए, असावग्जे, अकिरिए, णिरुवक्केसे, अणण्हयकरे, अच्छविकरे, अभूयाभिसंकणे । अपसत्थ मणविणए सत्तविहे पण्णत्ते तंजहा - पावए, सावज्जे, सकिरिए, सोवक्केसे, अणण्हयकरे, छविकरे, भूयाभिसंकणे । पसत्थ वइविणए सत्तविहे पण्णत्ते तंजहा - अपावए, असावग्जे, जाव अभूयाभिसंकणे । अपसत्य वइविणए सत्तविहे पण्णत्ते तंजहा - पावए जाव भूयाभिसंकणे । पसत्य कायविणए सत्तविहे पण्णते तंजहा - आउत्तं गमणं, आउत्तं ठाणं, आउत्तं णिसीयणं, आउत्तं तुयट्टणं, आउत्तं उल्लंघणं, आउत्तं पल्लंघणं, आउत्तं सव्विंदियजोग जुंजणया । अपसत्य कायविणए सत्तविहे पण्णत्ते तं जहा - अणाउत्तं गमणं जाव अणाउत्तं सव्विंदिय जोगजुंजणया । लोगोवयार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy