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स्थान ७
१९१ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 अलसी, कुसुम्भ, कोंद्रव, कांग, राल, गंवार, कोदूसक, सण, सरसों और मूलक, पमिलायइ - म्लान हो जाती है, जोणीवोच्छेए - योनि का विच्छेद हो जाता है, परिग्गहियाणं - परिगृहीता, खीरवरे - क्षीरवर, घयवरे - घृतवर, खोयवरे - क्षोदवर, सेढीओ - श्रेणियाँ, उज्जुआयया - ऋग्वायता, एगओवंका- एकतो वक्रा, दुहओवंका - उभयतोवक्रा, एगओखुहा - एकतः खा, दुहओखुहा - उभयतःखा, चक्कवाला - चक्रवाल, अद्धचक्कवाला - अर्द्ध चक्रवाल । ___ भावार्थ - अहो भगवन् ! अलसी, कुसुम्भ, कोद्रव, कांग, राल, गंवार, कोदूसक, सण, सरसों और मूलक इन धानों के बीज जो कोठे आदि में डाल कर बन्द किये गये हों, उनकी योनि कितने काल तक रहती है ? हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सात वर्ष तक योनि रहती है, इसके बाद योनि म्लान हो जाती है यावत् योनि का विच्छेद हो जाता है । अर्थात् उपरोक्त धान अचित्त हो जाते हैं। बादर अप्काय की उत्कृष्ट स्थिति. सात हजार वर्ष की कही गई है । तीसरी बालुकाप्रभा नरक के नैरयिकों की उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपम कही गई है । चौथी पङ्कप्रभा नरक के नैरयिकों की जघन्य स्थिति सात सागरोपम कही गई है।
देवों के राजा देवों के इन्द्र शक्रेन्द्र के पश्चिम दिशा के लोकपाल वरुण के सात अग्रमहिषियां कही गई हैं । देवों के राजा देवों के इन्द्र ईशानेन्द्र के पूर्व दिशा के लोकपाल सोम के सात अग्रमहिषियाँ कही गई है। देवों के राजा देवों के इन्द्र ईशानेन्द्र के दक्षिण दिशा के लोकपाल यम के सात अग्रमर्हिषियों कही गई हैं । देवों के राजा देवों के इन्द्र ईशानेन्द्र के आभ्यन्तर परिषदा के देवों की स्थिति सात पल्योपम की कही गई है । देवों के राजा देवों के इन्द्र शक्रेन्द्र की आभ्यन्तर परिषदा के देवों की स्थिति सात पल्योपम की कही गई है । देवों के राजा देवों के इन्द्र शक्रेन्द्र की अग्रमहिषी देवियों की स्थिति सात पल्योपम की कही गई है । सौधर्म देवलोक में परिगृहीता देवियों की उत्कृष्ट स्थिति सात पल्योपम की कही गई है । सारस्वत और आदित्य इन दो लोकान्तिक देवों के सात देव और सात सौ देवों का परिवार कहा गया है । गर्दतोय और तुषित इन दो लोकान्तिक देवों के सात देव और सात हजार देवों का परिवार कहा गया है। सनत्कुमार नामक तीसरे देवलोक में देवों की उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपम की कही गई है । माहेन्द्र नामक चौथे देवलोक में देवों की उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपम झाझेरी कही गई है । ब्रह्मलोक नामक पांचवें देवलोक में देवों की जघन्य स्थिति सात सागरोपम की कही गई है । ब्रह्मलोक नामक पांचवें और लान्तक नामक छठे देवलोक में विमान सात सौ योजन के ऊंचे कहे गये हैं । भवनवासी वाणव्यन्तर और ज्योतिषी देवों के भवधारणीय शरीर उत्कृष्ट सात हाथ के ऊंचे कहे गये हैं । सौधर्म और ईशान देवलोक में देवों के भवधारणीय शरीर सात हाथ ऊंचे कहे गये हैं । नन्दीश्वर द्वीप के भीतर सात द्वीप कहे गये हैं यथा - जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड द्वीप, पुष्करवरद्वीप, वरुणवर द्वीप; क्षीरवरद्वीप घृतवरद्वीप, क्षोदवरद्वीप । नन्दीश्वर द्वीप के भीतर सांत
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