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श्री स्थानांग सूत्र
लिङ्ग, संख्या, पुरुष और उपसर्ग आदि के भेद से शब्दों में अर्थभेद बतलाने वाले नय को शब्द नय कहते हैं । ६. समभिरूढ - पर्यायवाची शब्दों में निरुक्ति के भेद से भिन्न अर्थ मानने वाले नय को समभिरूढ नय कहते हैं । एवंभूत - शब्दों की स्वप्रवृत्ति की निमित्तभूत क्रिया से युक्त पदार्थों को ही उनका वाच्य बनाने वाला एवंभूत नय हैं ।
विवेचन - सात नयों का उदाहरण सहित विस्तृत वर्णन अनुयोग द्वार सूत्र से जानना चाहिये ।
सात स्वर
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सत्त सरा पण्णत्ता तंजहा -
सज्जे रिसहे गंधारे, मज्झिमे पंचमे सरे ।
वए चेव णिसाए, सरा सत्त वियाहिया ॥ १ ॥
एएसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त सर ठाणा पण्णत्ता तंजहा - सज्जं तु अग्ग जिब्भाए, उरेण रिसभं सरं । कंठुग्गएण गंधारं, मज्झ जिब्भाए मज्झिमं ॥ २ ॥ णासाए पंचमं बूया, दंतोट्ठेण य वयं । मुद्धाणेण य णिसायं, सर ठाणा वियाहिया ॥ ३ ॥ सत्त सरा जीव णिस्सिया पण्णत्ता तंजहा -
सज्जं रवइ मयूरो, कुक्कुडो रिसहं सरं । हंसो दइ गंधारं, मज्झिमं तु गवेलगा ।। ४॥ अह कुसुमसंभवे काले, कोइला पंचमं सरं । छटुं य सारसा कोंचा, णिसायं सत्तमं गया ॥ ५ ॥ सत्त सरा अजीव णिस्सिया पण्णत्ता तंजहा -
सज्जं रवइ मुइंगो, गोमुही रिसहं सरं ।
संखो णदइ गंधारं, मज्झिमं पुण झल्लरी ॥ ६ ॥ चउचलणपइट्ठाणा, गोहिया पंचमं सरं ।
आडंबरो रेवइयं, महाभेरी य सत्तमं ॥ ७॥
एएसिं णं सत्त सराणं सत्त सर लक्खणा पण्णत्ता तंजहा सज्जेण लहइ वित्तिं, कयं च ण विणस्स गावो मत्ता य पुत्ता य, णारीणं चेव वल्लभो ॥ ८ ॥
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