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स्थान ७
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जीव हैं । कितनेक श्रमण माहन ऐसा कहते हैं कि जीव भी हैं और अजीव भी हैं । वे मिथ्या कहते हैं। उस विभङ्गज्ञानी को पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय ये चार जीव निकाय सम्यक् ज्ञात नहीं होते हैं अर्थात् वह सिर्फ वनस्पति काय को ही जीव मानता है किन्तु पृथ्वीकाय आदि चार काय को जीव नहीं मानता है इसलिए वह इन चार कायों की हिंसा करता है । यह विभंगज्ञान का सातवां भेद है।
विवेचन - विभंगज्ञान - विरुद्ध अथवा अयथार्थ, अन्यथा वस्तु का भंग-विकल्प है जिसमें वह विभंग है, विभंग ऐसा जो ज्ञान है वह विभंगज्ञान है। अर्थात् मिथ्यात्व युक्त अवधिज्ञान को विभंगज्ञान (अवधि अज्ञान) कहते हैं। किसी बाल तपस्वी को अज्ञान तप के द्वारा जब दूर के पदार्थ दीखने लगते हैं तो वह अपने को विशिष्ट ज्ञान वाला समझ कर सर्वज्ञ के वचनों में विश्वास न करता हुआ मिथ्या प्ररूपणा करने लगता है। ऐसा बाल तपस्वी अधिक से अधिक ऊपर सौधर्म कल्प तक देखता है। अधोलोक में बिल्कुल नहीं देखता। किसी तरफ का अधूरा ज्ञान होने पर वैसी ही वस्तु स्थिति समझ कर वह दुराग्रह करने लगता है। विभंगज्ञान के सात भेदों का स्वरूप भावार्थ में बतलाया गया है।
. . योनि संग्रह गति आगति ____ सत्तविहे जोणिसंग्गहे पण्णत्ते तंजहा - अंडया, पोयया, जराउया, रसया, संसेयया, (संसेइमा) सम्मुच्छिमा उब्भिया । अंडया सत्त गइया, सत्त आगइया पण्णत्ता
जहा - अंडए अंडएसु उववजमाणे अंडएहिंतो वा, पोयएहिंतो वा जाव उभिएहितो वा उववज्जेजा, से चेव णं से अंडए अंडयत्तं विप्पजहमाणे अंडयत्ताए वा पोययत्ताए वा जाव उभियत्ताए वा गच्छेज्जा । पोयया, सत्त गइया, सत्त आगइया एवं चेव सत्तण्हं वि.गइरागई भाणियव्वा, जाव उब्भियत्ति ।
संग्रह-असंग्रह स्थान • आयरियउज्झायस्स णं गणंसि सत्त संग्गहठाणा पण्णत्ता तंजहा - आयरियउवज्झाए गणंसि आणं वा धारणं वा सम्मं पउंजित्ता भवइ, एवं जहा पंचट्ठाणे जाव आयरिय उवझाए गणंसि आपुच्छियचारी यावि भवइ णो अणापुच्छियचारी यावि भवइ, आयरियउवज्झाए गणंसि अणुप्पण्णाइं उवगरणाई सम्मं उप्पाइत्ता भवइ, आयरियउवज्झाए गणंसि पुव्वुप्पण्णाइं उवगरणाइं सम्मं सारक्खित्ता संगोवित्ता भवइ णो असम्मं सारक्खित्ता संगोवित्ता भवइ । आयरिय उवज्झायस्स णं गणसि सत्त असंग्गहठाणा पण्णत्ता तंजहा - आयरियउवज्झाए गणंसि आणं वा धारणं वा णो सम्मं पउंजित्ता भवइ एवं जाव उवगरणाणं णो सम्मं सारक्खित्ता संगोवित्ता भवइ ।
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