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श्री स्थानांग सूत्र
३. गोमूत्रिका - जैसे गाड़ी में जुता हुआ बैल चलता हुआ मूतता (पेशाब करता हुवा) जाता है उसका मूत्र आडा टेडा पड़ता है इसी प्रकार भिक्षा के क्षेत्र की कल्पना करके जो गोचरी की जाय उसे गोमूत्रिका गोचरी कहते हैं। इसमें साधु आमने सामने के घरों में पहले बांई पंक्ति में फिर दाहिनी पंक्ति में गोचरी करता है । इस क्रम से दोनों पंक्तियों के घरों से भिक्षा लेना गोमूत्रिका गोचरी है । ४. पतंगवीथिका - पतंगिये की गति के समान अनियमित रूप से गोचरी करना पतंथवीथिका गोचरी है । ५. शम्बूकावर्त्ता - शंख के आवर्त की तरह गोल गति वाली गोचरी शम्बूकावर्त्ता गोचरी है । ६. गतप्रत्यागता साधु एक पंक्ति के घरों में गोचरी करता हुआ अन्त तक जाता है और लौटते समय दूसरी पंक्ति के घरों से गोचरी लेता है उसे गतप्रत्यागता गोचरी कहते हैं।
जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के दक्षिण दिशा में इस रत्नप्रभा नामक पहली नरकं के अपक्रान्त यानी बहुत खराब छ महानरक कहे गये हैं यथा लोल, लोलुक, उद्दिष्ट, निर्दिष्ट, जरक, प्रजरक । चौथी पंकप्रभा नारकी के अपक्रान्त- महाखराब छ महानरक कहे गये हैं यथा - आर, वार, मार, रोर, रोरुक, और खाडखड ।
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विवेचन - त्रस होने पर भी जो प्राणी अगले भव में मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते या जिनमें देव उत्पन्न नहीं होते, उन्हें क्षुद्र प्राणी कहते हैं। इनके छह भेद हैं- १. बेइन्द्रिय २. तेइन्द्रिय ३. चउरेन्द्रिय ४. सम्मूर्च्छिम तिर्यंच पंचेन्द्रिय ५. तेठकाय ६. वायुकाय । उत्तराध्ययन सूत्र में तैककाय और वायुकाय के जीवों को गति त्रस कहा हैं।
पृथ्वीकाय, अप्काय और चौथी पंकप्रभा नरक से निकलकर उत्पन्न हुए मनुष्य एक समय में चार और वनस्पति से निकल कर उत्पन्न हुए मनुष्य छह सिद्ध हो सकते हैं। विकलेन्द्रिय में से उत्पन्न होकर विरति को प्राप्त कर सकते हैं परन्तु सिद्ध नहीं हो सकते तथा गति त्रस - तेठकाय वायुकाय के जीव अननंतर भव में भी सम्यक्त्व प्राप्त नहीं कर सकते हैं। तथा इन छह स्थानों में देवों की उत्पत्ति नहीं होने से क्षुद्र कहे गये हैं।
गो यानी गाय चर अर्थात् चरना गोचर अर्थात् गाय की तरह चर्या-फिरना गोचरचर्या कहलाती है तात्पर्य यह है कि जैसे गाय ऊंच नीच आदि सभी प्रकार के तृणों को सामान्य रूप से चरती है उसी प्रकार साधु ऊंचे, नीचे मध्यम कुलों में धर्म के साधनभूत शरीर के परिपालन हेतु भिक्षा के लिये चरनाफिरना गोचरचर्या है। अभिग्रह विशेष से गोचरचर्या के छह भेद किये हैं जिनका भावार्थ में विवेचन किया गया है।
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विमान प्रस्तट
बंभलोए णं कप्पे छ विमाणपत्थडा पण्णत्ता तंजहा अरए, विरए, णीरए, णिम्मले, वितिमिरे, विसुद्धे । चंदस्स णं जोइसिंदस्स जोइसरण्णो छ णक्खत्ता पुव्वं
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