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स्थान ६
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ऋद्धिरहित मनुष्य कहे गये हैं यथा - हेमवय के, हैरण्यवय के, हरिवास के, रम्यक वर्ष के, देवकुरु उत्तरकुरु के और अन्तर द्वीप के रहने वाले ।
__ अवसर्पिणी काल के छह आरे कहे गये हैं यथा - सुषमसुषमा, सुषमा, सुषमदुषमा, दुषमसुषमा, दुषमा, दुषमदुषमा। उत्सर्पिणी काल के छह आरे कहे गये हैं यथा - दुषमदुषमा, दुषमा, दुषमसुषमा, सुषमदुषमा, सुषमा, सुषमसुषमा। इस जम्बूद्वीप के भरत और ऐरवत क्षेत्रों में गत उत्सर्पिणी के सुषमसुषमा नामक छठे आरे में मनुष्यों के शरीर की अवगाहना छह हजार धनुष यानी तीन कोस की थी और उनकी आयु तीन पल्योपम की थी । इसी प्रकार इस जम्बूद्वीप के भरत और ऐरवत क्षेत्रों में इस अवसर्पिणी काल के सुषमसुषमा नामक पहले आरे में मनुष्यों के शरीर की अवगाहना तीन कोस की थी और उनकी आयु तीन पल्योपम की थी । इसी प्रकार इस जम्बूद्वीप के भरत और ऐरवत क्षेत्रों में आगामी उत्सर्पिणी के सुषमसुषमा आरा में मनुष्यों के शरीर की अवगाहना तीन कोस की होगी और उनकी आयु तीन पल्योपम की होगी । इस जम्बूद्वीप के देवकुरु उत्तरकुरु में मनुष्यों के शरीर की अवगाहना छह हजार धनुष की यानी तीन कोस की होती है और छह अर्द्ध पल्योपम यानी तीन पल्योपम की उनकी आयु होती है । इसी प्रकार धातकी खण्ड द्वीप के पूर्वार्द्ध में, पश्चिमार्द्ध में और पुष्करवरद्वीप के पूर्वार्द्ध और पश्चिमार्द्ध में ऊपर कहे अनुसार चार चार आलापक कह देने चाहिए । ____ छह प्रकार का संहनन - हड्डियों की रचना को संहनन कहते हैं यथा - १. वज्रऋषभ नाराच संहनन - वन का अर्थ कील है, ऋषभ का अर्थ वेष्टन-पट्टी है और नाराच का अर्थ दोनों ओर से मर्कट बन्ध है । जिस संहनन में दोनों ओर से मर्कट बन्ध द्वारा जुड़ी हुई दो हड्डियों पर तीसरी पट्टी की आकृति वाली हड्डी का चारों ओर से वेष्टन हो और इन तीनों हड्डियों को भेदने वाली वन नामक हड्डी
की कील हो उसे वप्रऋषभ नाराच संहनन कहते हैं । २. ऋषभ नाराच संहनन - जिस संहनन में दोनों । ओर से मर्कट बन्ध द्वारा जुड़ी हुई दो हड्डियों पर तीसरी पट्टी की आकृति वाली हड्डी का चारों ओर से
वेष्टन हो परन्तु तीनों हड्डियों को भेदने वाली वज्र नामक हड्डी की कील न हो उसे ऋषभ नाराच संहनन कहते हैं। ३. नाराच संहनन - जिस संहनन में दोनों ओर से मर्कट बन्ध द्वारा जुड़ी हुई हड़ियाँ हों परन्तु इनके चारों तरफ वेष्टन पट्टी और वज़ नामक कील न हो उसे नाराच संहनन कहते हैं । ४. अर्द्ध नाराच संहनन - जिस संहनन में एक तरफ तो मर्कट बन्ध हो और दूसरी तरफ कील हो उसे अर्द्धनाराच संहनन कहते हैं। ५. कीलिका संहनन - जिस संहनन में हड्डियाँ सिर्फ कील से जुड़ी हुई हों उसे कीलिका संहनन कहते हैं । ६. सेवार्त्तक संहनन - जिस संहनन में हड्डियाँ अन्त भाग में एक दूसरे को स्पर्श करती हुई रहती हैं तथा सदा चिकने पदार्थों के प्रयोग और तैलादि की मालिश की अपेक्षा रखती हैं उसे सेवार्त्तक संहनन कहते हैं ।
छह प्रकार का संस्थान कहा गया है। शरीर की आकृति को संस्थान कहते हैं। यथा -
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