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स्थान ६
मनुष्य भव आदि सुलभ और दुर्लभ, इन्द्रियों के विषयों में संवर और असंवर करने से होते हैं। अतः दोनों से साता और असाता होती है और इन दोनों की शुद्धि प्रायश्चित्त से होती है अतः इन्द्रियों के विषयों के, इन्द्रिय संवर और असंवर के, साता और असाता के और प्रायश्चित्त की प्ररूपणा करने. वाले छह सूत्रों की प्ररूपणा की गयी है। जो भावार्थ में दिये गये हैं।
नो इन्द्रिय यानी मन । नो इन्द्रिय का अर्थ-विषय वह नोइन्द्रियार्थं कहलाता है । मनुष्य भेद, ऋद्धिमान् एवं ऋद्धि रहित
छव्विहा मणुस्सगा पण्णत्ता तंजहा - जंबूदींवगा धायइसंड दीव पुरच्छिमद्धगा, धायइसंड दीव पच्चत्थिमद्धगा, पुक्खरवरदीवड्ढ पुरच्छिमद्धगा, पुक्खरवरदीवड्ड पच्चत्थिमद्धगा, अंतरदीवगा | अहवा छव्विहा मणुस्सा पण्णत्ता तंजहा सम्मुच्छिम मणुस्सा, कम्मभूमिगा, अकंम्मभूमिगा, अंतरदीवगा, गब्भवक्कंतियमणुस्सा, कम्मभूमिगा, अकम्मभूमिगा, अंतरदीवगा । छव्विहा इड्डिमंता मणुस्सा पण्णत्ता तंजहा - अरिहंता, चक्कवट्टी, बलदेवा, वासुदेवा, चारणा, विज्जाहरा । छव्विहा अणिडिमंता मणुस्सा पण्णत्ता तंजहा - हेमवंतगा, हेरण्णवंतगा, हरिवंसगा, रम्मगवंसगा, कुरुवासिणो, अंतरदीवगा ।
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अवसर्पिणी- उत्सर्पिणीकाल
छव्विहा ओसप्पिणी पण्णत्ता तंजहा - सुसमसुसमा, सुसमा, सुसमदुस्समा, दुस्समसुसमा, दुस्समा, दुसमदुस्समा । छव्विहा उस्सप्पिणी पण्णत्ता तंजहा दुस्समदुस्समा, दुस्समा, दुस्समसुसमा, सुसमदुस्समा, सुसमा, सुसमसुसमा । जंबू दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीयाए उस्सप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए मणुया छच्च धणुसहस्साई उड्डमुच्चत्तेणं हुत्था, छच्च अद्धपलिओवमाई परमाउं पालित्था | जंबूद्दीवे दीवे भरहेरवसु वासेसु इमीसे ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए एवं चेव । जंबूद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु आगमिस्साए उस्सप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए एवं चे जाव छच्च अद्धपलिओवमाइं परमाउं पालइस्संति । जंबूद्दीवे दीवे देवकुरु उत्तरकुरासु मणुया छ धणुसहस्साइं उड्डुं उच्चत्तेणं पण्णत्ता, छच्च अद्धपलिओवमाई परमाउं पालेंति । एवं धायइसंडदीव पुरच्छिमद्धे चत्तारि आलावगा जांव पुक्खरवरदीवड्ड पच्चत्थिमद्धे चत्तारि आलावगा ।
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