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________________ स्थान ६ १०७ 060000000000000000000000000000000000000000000000000 छदमस्थ और केवलज्ञानी का विषय छ ठाणाई छउमत्थे सव्वभावेणं ण जाणइ ण पासइ तंजहा - धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आगासं, जीवमसरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सह । एयाणि चेव उप्पण्णणाणदंसणधरे अरहा जिणे जाव सव्वभावेणं जाणइ पासइ तंजहा - धम्मत्थिकायं जाव सई । छहिं ठाणेहिं सव्वजीवाणं णत्थि इड्डि इ वा, जुत्ती इवा, जसे इवा, बले इ वा, वीरिए इ वा, पुरिसक्कारे इ वा, परक्कमे इ वा तंजहा - जीवं वा अजीवं करणयाए, अजीवं वा जीवं करणयाए, एगसमएणं वा दो भासाओ भासित्तए, सयं कडं कम्म वेएमि वा, मा वा वेएमि, परमाणुपोग्गलं वा छिंदित्तए वा, भिंदित्तए वा, अगणि काएण वा समोदहित्तए, बहिया वा लोगंता गमणयाए । ‘छह जीव निकाय, तारे के आकार के ग्रह .. छज्जीव णिकाया पण्णत्ता तंजहा - पुढविकाइया, आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया, तसकाइया । छ तारग्गहा पण्णत्ता तंजहा - सुक्के बुहे, बहस्सइ, अंगारए सणिच्चरे, केऊ। . संसारी जीव, गति आगति, तृण वनस्पतिकाय छव्विहा संसारसमावण्णगा जावा पण्णत्ता तंजहा - पुढविकाइया जाव तसकाइया। पुढविकाइया छ गइया छ आगइया पण्णत्ता तंजहा - पुढविकाइए पुढविकाइएसु उववजमाणे पुढविकाइएहितो वा जाव तसकाइएहितो वा उववजेजा। सो चेव णं से पुढविकाइए पुढविकाइयत्तं विप्पजहमाणे पुढविकाइयत्ताए वा जाव तसकाइयत्ताए वा गच्छेज्जा ।आउकाइया वि छ गइया छ आगइया एवं चेव जाव तसकाइया । - छव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता तंजहा - आभिणिबोहियणाणी, सुयणाणी, ओहिणाणी, मणपंजवणाणी, केवलणाणी, अण्णाणी । अहवा छव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता तंजहा - एगिदिया जाव पंचिंदिया अणिंदिया । अहवा छव्विहा सव्व जीवा पण्णत्ता तंजहा - ओरालियसरीरी, वेउव्वियसरीरी, आहारगसरीरी, तेअगसरीरी, कम्मगसरीरी, असरीरी । छव्विहा तण वणस्सइकाइया पण्णत्ता तंजहा - अग्गबीया, मूलबीया, पोरबीया, खंधबीया, बीयरुहा, सम्मुच्छिमा॥४३॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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