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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
१. ईर्या समिति - ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र के निमित्त आंगमोक्त काल में युग परिमाण भूमि को एकाग्र चित्त से देखते हुए राजमार्ग आदि में यतना पूर्वक गमनागमन करना ईया समिति है।
२. भाषा समिति - यतना पूर्वक भाषण में प्रवृत्ति करना अर्थात् आवश्यकता होने पर भाषा के दोषों का परिहार करते हुए सत्य, हित, मित और असन्दिध वचन कहना भाषा समिति है।
३. एषणा समिति - गवेषण, ग्रहण और ग्रास सम्बन्धी एषणा के दोषों से अदूषित अतएव विशुद्ध आहार पानी, रजोहरण, मुखवस्त्रिका आदि औधिक उपधि और शय्या, पाट पाटलादि औपग्रहिक उपधि का ग्रहण करना एषणा समिति है। . ४. आदान भंड मात्र निक्षेपणा समिति - आसन, संस्तारक, पाट, पाटला, वस्त्र, पात्र, दण्डादि उपकरणों को उपयोग पूर्वक देख कर एवं रजोहरणादि से पूंज कर लेना एवं उपयोग पूर्वक देखी और पूजी हुई भूमि पर रखना आदान भंड मात्र निक्षेपणा समिति है।
५. उच्चार प्रस्रवण खेल सिंघाण जल्ल पस्थिापनिका समिति - स्थण्डिल के दोषों को वर्जते हुए परिठवने योग्य लघुनीत, बड़ीनीत, थूक, कफ, नासिका-मल और मैल आदि को निर्जीव स्थण्डिल में उपयोग पूर्वक परिठवना उच्चार प्रस्रवण खेल सिंघाण जल्ल परिस्थापनिका समिति है।
जीव के भेद . पंचविहा संसार समावण्णगा पण्णत्ता तंजहा - एगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिदिया, पंचिंदिया । एगिंदिया पंच गइया पंच आगइया पण्णत्ता तंजहा - एगिदिए एगिदिएसु उववज्जमाणे एगिदिएहितो जाव पंचिंदिएहिंतो वा उववज्जेज्जा से चेव णं से एगिदिए एगिंदियत्तं विप्पजहमाणे एगिदियत्ताए वा जाव पंचिंदियत्ताए वा गच्छेज्जा। बेइंदिया पंचगइया पंच आगइया एवं चेव । एवं जाव पंचिंदिया पंचगइया पंच आगइया पण्णत्ता तंजहा - पंचिंदिया जाव गच्छेज्जा।
पंचविहा सव्वजीवा पण्णत्ता तंजहा - कोहकसाई, माणकसाई, मायाकसाई, लोभकसाई, अकसाई । अहवा पंचविहा सव्वजीवा पण्णत्ता तंजहा - जेरइया, तिरिया, मणुया, देवा, सिद्धा।
__ योनि स्थिति अह भंते ! कल मसूर तिल मुग्ग मास णिप्फाव कुलत्थ आलिसंदग सईण पलिमंथगाणं एएसिणं धण्णाणं कुट्ठाउत्ताणं जहा सालीणं जाव केवइयं कालं जोणी संचिठइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं पंच संवच्छराई, तेण परं जोणी पमिलायइ जाव तेण पर जोणी वोच्छिण्णे पण्णत्ते ।
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