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स्थान २ उद्देशक ३
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पोग्गला पण्णत्ता तंजहा - इट्ठा चेव, अणिट्ठा चेव। एवं कंता, पिया, मणुण्णा, मणामा। दुविहा सहा पण्णत्ता तंजहा - अत्ता चेव, अणत्ता चेव । एवं इट्टा जाव मणामा। दुविहा रूवा पण्णत्ता तंजहा - अत्ता चेव, अणत्ता चेव, जाव मणामा। एवं गंधा, रसा, फासा। एवमिक्किक्के छ आलावगा भाणियव्वा ॥ ३१॥ .
कठिन शब्दार्थ - पोग्गला - पुद्गल, साहण्णंति - मिलते हैं, सई - स्वयं, परेण - पर संयोग से, भिजति - बिखरते हैं, परिसडंति - सड़ जाते हैं, परिसाडिजंति - सड़ाये जाते हैं, परिवडंति - गिरते हैं, विद्धंसंति - विध्वंस-विनष्ट होते हैं, भिण्णा - भिन्न-अलग अलग बिखरे हुए, अभिण्णाअभिन्न-मिले हुए, भेउरथम्मा - स्वभाव से भिन्न-भेदन होने वाले, णोपरमाणु-पोग्गला - नो परमाणु पुद्गल, बद्धपासपुडा - शरीर के कुछ भाग का स्पर्श कर बंधे हुए पुद्गल, परियाइतच्चेव - जिन्होंने पुद्गलों की पर्याय को स्पर्श कर लिया है, अपरियाइतच्चेव - पर्याय को स्पर्श नहीं किया है, अत्ता - गृहीत-ग्रहण किये हुए, अणत्ता - अगृहीत-ग्रहण न किये हुए, इट्ठा - इष्ट, अणिट्ठा - अनिष्ट, कंता- कान्त, पिया - प्रिय, मणुण्णा - मनोज्ञ, मणामा - मनोहर, इक्किक्के - प्रत्येक में, आलावगा - आलापक।
.. भावार्थ - दो कारणों से पुद्गल मिलते हैं यथा - पुद्गल स्वयं मिलते हैं अथवा परसंयोग से पुद्गल मिलते हैं। दो कारणों से पुद्गल बिखरते हैं यथा - पुद्गल स्वयं बिखरते हैं अथवा पुद्गल परसंयोग से बिखरते हैं। दो कारणों से पुद्गल सड़ जाते हैं यथा - पुद्गल स्वयं सड़ जाते हैं अथवा पुद्गल परसंयोग से सड़ाये जाते हैं। इसी प्रकार पुद्गल दो कारणों से गिरते हैं और विध्वंस - विनष्ट होते हैं। पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं यथा - भिन्न - अलग अलग बिखरे हुए और अभिन्न - मिले हुए। पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं यथा - स्वभाव से ही भिन्न होने वाले और भेदन न होने वाले वप्रादिक। पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं यथा - परमाणु पुद्गल और नोपरमाणु पुद्गल। पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं यथा - सूक्ष्म और बादर। पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं यथा - शरीर पर चिपकी हुई धूलि के समान शरीर के कुछ भाग का स्पर्श कर बन्धे हुए कर्म पुद्गल और श्रोत्रेन्द्रिय आदि का स्पर्श करने वाले किन्तु बन्धे हुए नहीं। पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं यथा - जिन्होंने पुद्गलों की पर्याय को स्पर्श कर लिया है और जिन्होंने पुद्गलों की पर्याय को स्पर्श नहीं किया है। पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं यथा - जीव के द्वारा ग्रहण किये हुए शरीरादि और जीव के द्वारा ग्रहण न किये गये। पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं यथा - इष्ट
और अनिष्ट। इसी प्रकार कान्तकारी, अकान्तकारी, प्रियकारी, अप्रियकारी, मनोज्ञ, अमनोज्ञ, मनोहर, अमनोहर। शब्द दो प्रकार के कहे गये हैं यथा - जीव द्वारा गृहीत और अगृहीत। इसी प्रकार इष्ट,
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