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________________ स्थान २ उद्देशक १ ६३ सचित्त। इसी प्रकार अप्कायिक, तेउकायिक, वायुकायिक यावत् वनस्पतिकायिक जीवों के भी परिणत और अपरिणत ये दो दो भेद जानने चाहिए। द्रव्य दो प्रकार के कहे गये हैं यथा - परिणत अर्थात् जो एक पर्याय को छोड़ कर दूसरी पर्याय को प्राप्त हो गये हैं और अपरिणत अर्थात् जो विवक्षित पर्याय वाले हैं। पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं जैसे कि गतिसमापन्नक अर्थात् विग्रहगति से पृथ्वीकाय में उत्पन्न होने के लिए जाने वाले और अगतिसमापन्नक अर्थात् स्वकाय में स्थित रहने वाले। इसी प्रकार अप्कायिक, तेउकायिक, वायुकायिक यावत् वनस्पतिकायिक जीवों के दो दो भेद जानना चाहिए। द्रव्य दो प्रकार के कहे गये हैं यथा-गतिसमापन्नक अर्थात् गमन करने वाले और अगतिसमापन्नक अर्थात् स्थित रहने वाले। पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के कहे गये हैं जैसे कि जिन जीवों ने उत्पन्न होकर अभी तुरन्त आकाश प्रदेशों का अवगाहन किया है वे अनन्तरावगाढ है और आकाशप्रदेशों का अवगाहन किये जिन्हें दो तीन समय हो गये हैं वे परम्परावगाढ हैं। इसी तरह अप्कायिक, तेउकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक यावत् द्रव्यों तक प्रत्येक के अनन्तरावगाढ और परम्परावगाढ ये दो दो भेद जानने चाहिए। विवेचन - पृथ्वी ही जिन जीवों का शरीर है वे पृथ्वीकायिक कहलाते हैं। सूक्ष्म और बादर पर्याप्त और अपर्याप्त, परिणत और अपरिणत के भेदों से पृथ्वीकायिक जीवों के दो-दो भेद कहे हैं। सूक्ष्म-सूक्ष्म नाम कर्म के उदय से जिन जीवों का शरीर अत्यन्त सूक्ष्म अर्थात् इन्द्रिय ग्राही न हो, मात्र अतिशय ज्ञानियों द्वारा जिनका ग्रहण हो, उन्हें सूक्ष्म कहते हैं। सूक्ष्म जीव सर्व लोक में व्याप्त है। . बादर - बादर नाम कर्म के उदय से बादर अर्थात् स्थूल शरीर वाले एवं पांचों इन्द्रियों में से किसी इन्द्रिय से जो अवश्य ग्राही होते हैं। वे जीव बादर कहलाते हैं। पर्याप्तक - जिस जीव में जितनी पर्याप्तियाँ संभव है। वह जब उतनी पर्याप्तियों को पूरी कर लेता है तब उसे पर्याप्तक कहते हैं। एकेन्द्रिय जीव स्व योग्य चार पर्याप्तियां पूरी करने पर द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय पांच पर्याप्तियां पूरी करने पर और संज्ञी पंचेन्द्रिय छह पर्याप्तियां पूरी करने पर पर्याप्तक कहे जाते हैं। प्रश्न - पर्याप्ति किसे कहते हैं ? उत्तर - पर्याप्ति यानी शक्ति - सामर्थ्य विशेष। यह शक्ति पुद्गल द्रव्य के उपचय से उत्पन्न होती है। पर्याप्ति छह प्रकार की होती है - १. आहार २. शरीर ३. इन्द्रिय ४. श्वासोच्छ्वास ५. भाषा और ६ मन। इसमें एकेन्द्रिय में आहार, शरीर, इन्द्रिय और श्वासोच्छवास ये चार पर्याप्तियाँ तीन विकलेन्द्रिय और असन्नी पंचेन्द्रिय में पांच और संज्ञी पंचेन्द्रिय में छह पर्याप्तियां होती हैं। .... अपर्याप्तक - जिस जीव की पर्याप्तियां पूरी न हों वह अपर्याप्तक कहा जाता है। जीव तीन पर्याप्तियों को पूर्ण करके ही मरते हैं, पहले नहीं। क्योंकि जीव आगामी भव की आयु बांध कर ही मृत्यु प्राप्त करते हैं और आयु का बन्ध उन्हीं जीवों को होता है जिन्होंने आहार, शरीर और इन्द्रिय, ये तीन पर्याप्तियाँ पूर्ण कर ली है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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