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वि ष या नुक्रमणि का
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प्रथम स्थान : प्रथम उद्देशक .. | विषय विषय
पुद्गल, परमाणु उत्थानिका
जम्बूद्वीप-परिचय
३४-३५ आत्म, दण्ड, क्रिया, लोक
| एक मुक्त श्री भगवान् महावीर ३४-३५ अलोक, धर्म, अधर्म, बन्ध
| अनुत्तरौपपातिक देव-अवगाहना ३४-३५ मोक्ष, पुण्य, पाप, आस्रव
| एक तारा परिवार, नक्षत्र
३४-३५ संवर, वेदना, निर्जरा
पुद्गलों की अनन्तता
३४-३५ प्रत्येक शरीर में एक जीव .
। द्वितीय स्थान : प्रथम उद्देशक भवधारणीय और उत्तर वैक्रिय १२ जीव की द्विविधता मन, काय-व्यायाम
त्रस-स्थावर विगतार्चा-त्यज्यमान शरीर १२ अरूपी अजीवकाय-वर्णन
३८-४० गति-आगति, तर्क
१२ | बन्ध, मोक्ष, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर ३८-४० ज्ञान, दर्शन, चारित्र १३ वेदना, निर्जरा
३८-४० समय, प्रदेश, परमाणु
१४ | जीव क्रिया, अजीव-क्रिया ३८-४० सिद्धि, सिद्ध, परिनिर्वाण, परिनिर्वृत. १५ ईर्यापथिकी-सांपरायिकी
३८-४० शब्द-रूपादि का एकत्व
' १५ कायिकी और आधिकरणिकी क्रिया ३८-४० प्राणातिपातादि का एकत्व ___१६-१८ प्राद्वेषिकी और पारितापनिकी क्रिया ३८-४० विरमण-विवेक
१८ | प्राणातिपातिकी और अप्रत्याख्यानिकी ३८-४१ काल-चक्र, अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी . १९ आरम्भिकी, पारिग्रहिकी क्रिया ४१-४४ संसारी जीवों की वर्गणा
२१ / माया-प्रत्ययिकी, मिथ्यादर्शन-प्रत्ययिकी ४१-४४ दण्डक, नैरयिक
२२-२३ | दृष्टिजा और स्पृष्टिजा क्रिया . ४१-४४ भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक
२३ / प्रातीत्यिकी सामन्तोपनिपातिकी क्रिया ४१-४४ सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, मिश्रदृष्टि . २४ स्वहस्तिकी एवं नैसृष्टिकी क्रिया ४४-४६ कृष्णपाक्षिक, शुक्लपाक्षिक
२६ | आज्ञापनिकी और वैदारणिकी क्रिया ४४-४६ सिद्धों के भेद
३० | अनाभोग प्रत्यया, अनवकांक्षा-प्रत्यया ४४-४६
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