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________________ वि ष या नुक्रमणि का पृष्ठ पृष्ठ १-४ ७-८ ३७ ३८ . प्रथम स्थान : प्रथम उद्देशक .. | विषय विषय पुद्गल, परमाणु उत्थानिका जम्बूद्वीप-परिचय ३४-३५ आत्म, दण्ड, क्रिया, लोक | एक मुक्त श्री भगवान् महावीर ३४-३५ अलोक, धर्म, अधर्म, बन्ध | अनुत्तरौपपातिक देव-अवगाहना ३४-३५ मोक्ष, पुण्य, पाप, आस्रव | एक तारा परिवार, नक्षत्र ३४-३५ संवर, वेदना, निर्जरा पुद्गलों की अनन्तता ३४-३५ प्रत्येक शरीर में एक जीव . । द्वितीय स्थान : प्रथम उद्देशक भवधारणीय और उत्तर वैक्रिय १२ जीव की द्विविधता मन, काय-व्यायाम त्रस-स्थावर विगतार्चा-त्यज्यमान शरीर १२ अरूपी अजीवकाय-वर्णन ३८-४० गति-आगति, तर्क १२ | बन्ध, मोक्ष, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर ३८-४० ज्ञान, दर्शन, चारित्र १३ वेदना, निर्जरा ३८-४० समय, प्रदेश, परमाणु १४ | जीव क्रिया, अजीव-क्रिया ३८-४० सिद्धि, सिद्ध, परिनिर्वाण, परिनिर्वृत. १५ ईर्यापथिकी-सांपरायिकी ३८-४० शब्द-रूपादि का एकत्व ' १५ कायिकी और आधिकरणिकी क्रिया ३८-४० प्राणातिपातादि का एकत्व ___१६-१८ प्राद्वेषिकी और पारितापनिकी क्रिया ३८-४० विरमण-विवेक १८ | प्राणातिपातिकी और अप्रत्याख्यानिकी ३८-४१ काल-चक्र, अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी . १९ आरम्भिकी, पारिग्रहिकी क्रिया ४१-४४ संसारी जीवों की वर्गणा २१ / माया-प्रत्ययिकी, मिथ्यादर्शन-प्रत्ययिकी ४१-४४ दण्डक, नैरयिक २२-२३ | दृष्टिजा और स्पृष्टिजा क्रिया . ४१-४४ भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक २३ / प्रातीत्यिकी सामन्तोपनिपातिकी क्रिया ४१-४४ सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, मिश्रदृष्टि . २४ स्वहस्तिकी एवं नैसृष्टिकी क्रिया ४४-४६ कृष्णपाक्षिक, शुक्लपाक्षिक २६ | आज्ञापनिकी और वैदारणिकी क्रिया ४४-४६ सिद्धों के भेद ३० | अनाभोग प्रत्यया, अनवकांक्षा-प्रत्यया ४४-४६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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