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श्री स्थानांग सूत्र
गर्हा की तरह ही प्रत्याख्यान के दो-दो भेद कहे हैं।
विद्या (ज्ञान) और चारित्र मोक्ष का साधन है। कहा भी है - 'ज्ञान क्रियाभ्यां मोक्षः' ज्ञान और क्रिया ही मोक्ष प्रदायक है। चारित्र के बिना ज्ञान पंगु है और ज्ञान के बिना चारित्र अन्धा है। तत्त्वार्थ सूत्र के रचनाकार उमास्वाति ने "सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्ष मार्गः" सम्यग् दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र को मोक्ष मार्ग बताया है। सम्यक् तप का ग्रहण सम्यक् चारित्र में हो जाता है और सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान का ग्रहण ज्ञान में हो जाता है। इस तरह विद्या और चरण मोक्ष के उपाय हैं।
संसार के लिए भगवान् ने 'अणाइयं' आदि विशेषण लगाये हैं जिनका अर्थ इस प्रकार है -
अणाइयं - अनादि अर्थात् जिसका आदि प्रारम्भ न हो अथवा अणाइयं - अज्ञातिक अर्थात् जिसका कोई स्वजन नहीं रहता, ऐसे पाप कर्म बांधता है अथवा अणाइयं यानी 'ऋणातीत' अर्थात् ऋण से होने वाले दुःख की अपेक्षा अधिक दुःखदायी। अथवा 'अणाइयं' यानी अणातीत अर्थात् अतिशय पाप। ___ अणवयग्गं-अनवदन - यानी अनन्त अर्थात् जिसका परिमाण ज्ञात न हो, जिसके अन्त का पता न चले, उसे अनन्त कहते हैं।
दीहमद्धं - अध्व का अर्थ है - मार्ग और दीह का अर्थ है दीर्घ (लम्बा), जिसका मार्ग लम्बा हो वह 'दीहमद्धं' कहलाता है। अथवा दीर्घकाल वाले को 'दीहमद्धं' कहते हैं।
चाउरतं - चाउरंतं का अर्थ है - चार विभाग वाला। नरक गति, तिर्यंच गति, मनुष्य गति और देवं गति। इस प्रकार जिसमें चार विभाग वह चाउरन्त - चातुरन्त कहलाता है।
ज्ञान और चारित्र से संपन्न अनगार अनादि अनन्त दीर्घ मार्ग वाले, चार विभाग वाले संसार रूप कान्तार (अरण्य) वन को पार कर जाता है अर्थात् मोक्ष प्राप्त कर लेता है। ..
दो ठाणाई अपरियाणित्ता आया णो केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए तंजहा - आरंभे चेव परिग्गहे चेव। दो ठाणाई अपरियाणित्ता आया णो केवलं बोहिं बुझेज्जा तंजहा - आरंभे चेव परिग्गहे चेव। दो ठाणाई अपरियाणित्ता आया णो केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइज्जा तंजहा- आरंभे चेव परिग्गहे चेव। एवं शो केवलं बंभचेरवासमावसेज्जा। णो केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा। णो केवलेणं संवरेणं संवरेजा। णो केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेजा। एवं सुयणाणं, ओहिणाणं, मणपण्जवणाणं, केवलणाणं॥१७॥ - कठिन शब्दार्थ - ठाणाई - स्थानों को, अपरियाणित्ता - जाने बिना और छोड़े बिना, आया
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