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श्री स्थानांग सूत्र
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दृष्टिजा (दृष्टिका) - रागद्वेष से कलुषित चित्त पूर्वक किसी जीव या अजीव पदार्थ को देखने से जो क्रिया लगती है उसे दृष्टिजा (दृष्टिका) कहते हैं।
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स्पृष्टिजा (स्पृष्टिका) पृष्टिजा ( पृष्टिका ) - रागादि से कलुषित चित्त पूर्वक जीव अजीव के स्पर्श से लगने वाली क्रिया स्पृष्टिजा (स्पृष्टिका) कहलाती है। अथवा मलिन भावना से जो प्रश्न किया जाता है उसे पृष्टिजा (पृष्टिका) कहते हैं। जीव और अजीव के भेद से यह क्रिया भी दो प्रकार की होती है।
प्रातीत्यिकी - जीव और अजीव रूप बाह्य वस्तु के आश्रय से उत्पन्न राग द्वेष और उससे होने वाली क्रिया प्रातीत्यिकी कहलाती है।
सामन्तोपनिपातिकी - जीव और अजीव वस्तुओं के किये हुए संग्रह को देख कर लोग प्रशंसा करे और उस प्रशंसा को सुन कर हर्षित होना । इस प्रकार बहुत से लोगों के द्वारा अपनी प्रशंसा सुन कर हर्षित होने से यह क्रिया लगती है। यह भी जीव और अजीव के भेद से दो प्रकार की होती है ।
दो किरियाओ पण्णत्ताओ तंजहा - साहत्थिया चेव, णेसत्थिया चेव । साहत्थिया किरिया दुविहा पण्णत्ता तंजहा - जीवसाहत्थिया चेव, अजीवसाहत्थिया चेव । एवं सत्थिया वि | दो किरियाओ पण्णत्ताओ तंजहा आणवणिया चेव, वेयारणिया चेव | आणवणिया किरिया दुविहा पण्णत्ता तंजहा जीव आणवणिया चेव, अजीव आणवणिया चेव । एवं वेयारणिया वि। दो किरियाओ पण्णत्ताओ तंजहाअणाभोगवत्तिया चेव, अणवकंखवत्तिया चेव । अणाभोगवत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता तंजहा - अणाउत्त आइयणया चेव, अणाउत्तपमज्जणया चेव । अणवकं खवत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता तंजहा - आयसरीर अणवकंखवत्तिया चेव, परसरीर अणवकंखवत्तिया चेव । दो किरियाओ पण्णत्ताओ तंजहा - पेज्जवत्तिया चेव, दोसवत्तिया चेव । पेज्जवत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता तंजहा- मायावत्तिया चेव, लोभवत्तिया चेव । दोसवत्तिया किरिया दुविहा पण्णत्ता तंजहा- कोहवत्तिया चेव, माणवत्तिया चेव ॥ १५ ॥
कठिन शब्दार्थ - साहत्थिया - स्वहस्तिकी, णेसत्थिया - नैसृष्टिकी, आणवणिया आज्ञापनी (आनायनी), वेयारणिया - वैदारिणी, अणाभोगवत्तिया - अनाभोगप्रत्यया, अणवकंखवत्तिया - अनवकांक्षाप्रत्यया, अणाउत्तआइयणया अनायुक्त आदानता, अणाउत्तपमज्जणया
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