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श्री स्थानांग सूत्र
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खमे, पडिमाणं पालए, धीइमं, अरइरइसहे, दविए, वीरियसंपण्णे देवेहिं से णामं कए सम भगवं महावीरे।"
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अर्थ- दीक्षा लेने के बाद भगवान् महावीर स्वामी ने भय को उत्पन्न करने वाले एवं भयंकर देव मनुष्य और तिर्यंचों के परिषहों को सहन किया । और उन परीषह उपसर्गों में अचल तथा अड़ोल एवं अकम्प रहे। क्षमा पूर्वक सहन किये। भिक्षु पडिमाओं का पालन किया। धैर्यवान, ज्ञानवान अरति - रति को सहन करने वाले और अतुल वीर्य सम्पन्न होने के कारण देवों ने उनका नाम 'महावीर' दिया था। क्योंकि जन्म का नाम तो उनका वर्द्धमान था जो कि माता-पिता के द्वारा गुणनिष्पन्न दिया गया था ।
।। इति प्रथम स्थानक समाप्त ॥
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