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स्पर्शन, रसना, घ्राण और श्रोत्र इन्द्रिय तथा मन से जो पदार्थों के सामान्य धर्म का प्रतिभास होता है। उसे अचक्षु दर्शन कहते हैं। ३. अवधि दर्शन अवधि दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम होने पर इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना आत्मा को रूषी द्रव्य के सामान्य धर्म का जो बोध होता है। उसे अवधि दर्शन कहते हैं ।
४. केवल दर्शन - केवल दर्शनावरणीय कर्म के क्षय होने पर आत्मा द्वारा संसार के सकल पदार्थों का जो सामान्य ज्ञान होता है। उसे केवल दर्शन कहते हैं।
स्थान ४ उद्देशक ४
मित्र और मुक्त की चौभंगी
चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा मित्ते णाममेगे मित्ते, मित्ते णाममेगे अमित्ते, अमित्ते णाममेगे मित्ते, अमित्ते णाममेगे अमित्ते । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंज़हा - मित्ते णाममेगे मित्तरूवे, मित्ते णाममेगे अमित्तरूवे, अमित्ते णाममेगे मित्तरूवे, अमित्ते णाममेगे अमित्तरूवे
चत्तारि पुरिसजाय पण्णत्ता तंजहा - मुत्ते णाममेगे मुत्ते, मुत्ते णाममेगे अमुत्ते, अमुत्ते णाममेगे मुत्ते, अमुत्ते णाममेगें अमुत्ते । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा मुत्ते णाममेगे मुत्तरूवे, मुत्ते णाममेगे अमुत्तरूवे, अमुत्ते णाममेगे मुत्तरूवे, अमुत्ते णाममेगे अमुत्तरूवे ॥ २०१ ॥
कठिन शब्दार्थ - मित्ते मित्र, अमित्ते - अमित्र, मित्तरूवे - मित्र रूप, अमित्तरूवे अमित्र रूप, मुत्ते मुक्त, मुत्तरूवे मुक्त रूप, अमुत्ते - अमुक्त ।
भावार्थ - चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा कोई एक इस लोक में मित्र है और परलोक के लिए भी मित्र है; जैसे सद्गुरु । कोई एक इस लोक में तो मित्र है किन्तु परलोक के लिए अमित्र है, जैसे स्त्री आदि । कोई एक इस लोक के लिए तो अमित्र है किन्तु परलोक के लिए मित्र, जैसे प्रतिकूल स्त्री, जिसके कारण वैराग्य उत्पन्न हो । कोई एक इस लोक में भी अमित्र है और परलोक में भी अमित्र है । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई एक पुरुष आन्तरिक हृदय से मित्र है और बाहर भी मित्र सरीखा ही व्यवहार रखता है । कोई एक आन्तरिक हृदय से मित्र हैं किन्तु बाहर मित्र सरीखा व्यवहार नहीं रखता है । कोई एक भीतर से तो अमित्र है किन्तु बाहर मित्र सरीखा व्यवहार रखता है । कोई एक भीतर से भी अमित्र है और बाहर से भी अमित्र सरीखा ही व्यवहार रखता है ।
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चार प्रकार पुरुष कहे गये हैं यथा- कोई एक पुरुष द्रव्य से मुक्त है और भाव से भी मुक्त है, जैसे श्रेष्ठ साधु । कोई एक पुरुष द्रव्यं से तो मुक्त है किन्तु भाव से अमुक्त है, जैसे मंगते भिखारी आदि । कोई एक पुरुष द्रव्य से तो अमुक्त है किन्तु भाव से मुक्त, जैसे भरत चक्रवर्ती । कोई एक पुरुष
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