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स्थान ४ उद्देशक ४
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कर्म के उदय से, मति से यानी आहार कथा सुनने और आहार को देखने से तथा निरन्तर आहार का स्मरण करने से । इन उपरोक्त चार कारणों से जीव के आहार संज्ञा उत्पन्न होती है । सत्त्व अर्थात् शक्तिहीन होने से, भयमोहनीय कर्म के उदय से, भय की बात सुनने से तथा भयानक वस्तुओं के देखने आदि से और निरन्तर भय का चिन्तन करने से इन चार कारणों से भयसंज्ञा उत्पन्न होती है । शरीर में मांस लोही आदि के खूब बढ़ने से, वेद मोहनीय कर्म के उदय से, मति से यानी मैथुन सम्बन्धी बातचीत के सुनने से, सदा मैथुन की बात सोचते रहने से इन चार कारणों से मैथुन संज्ञा उत्पन्न होती . है। परिग्रह का त्याग न करने से, लोभ मोहनीय कर्म के उदय होने से, मति से यानी परिग्रह सम्बन्धी बातचीत सुनने से और परिग्रह को देखने से सदा परिग्रह का विचार करते रहने से, इन चार कारणों से परिग्रह संज्ञा उत्पन्न होती है । चार प्रकार के शब्दादि काम कहे गये हैं । यथा - श्रृंगार, करुण, बीभत्स
और रौद्र । देवों के काम अत्यन्त मनोज्ञ होने के कारण 'श्रृंङ्गार' रूप है । मनुष्यों के काम शोक कराने वाले और तुच्छ होने से 'करुण' रूप हैं। तिर्यञ्चों के काम घृणित होने से 'बीभत्स' रूप हैं । नारकी जीवों के काम अत्यन्त अमिष्ट और क्रोधोत्पादक होने से 'रौद्र' हैं । .
विवेचन - संज्ञा की व्याख्या और भेद - चेतना - ज्ञान का, असातावेदनीय और मोहनीय कर्म के उदय से पैदा होने वाले विकार से युक्त होना संज्ञा है। संज्ञा के चार भेद हैं - १. आहार संज्ञा २. भय संज्ञा ३. मैथुन संज्ञा ४. परिग्रह संज्ञा।
१. आहार संज्ञा - तैजस शरीर नाम कर्म और क्षुधा वेदनीय के उदय से कवलादि आहार के लिए आहार योग्य पुद्गलों को ग्रहण करने की जीव की अभिलाषा को आहार संज्ञा कहते हैं।
२. भय संज्ञा - भय मोहनीय के उदय से होने वाला जीव का त्रासरूप परिणाम भय संज्ञा है। भय से उद्भांत जीव.के नेत्र और मुख में विकार, रोमाञ्च, कम्पन आदि क्रियाएं होती है।
३. मैथुन संज्ञा - वेद मोहनीय कर्म के उदय से उत्पन्न होने वाली मैथुन की इच्छा मैथुन संज्ञा है।
४. परिग्रह संज्ञा - लोभ मोहनीय के उदय से उत्पन्न होने वाली सचित्त आदि द्रव्यों को ग्रहण रूप आत्मा की अभिलाषा अर्थात् तृष्णा को परिग्रह संज्ञा कहते हैं।
(१) आहार संज्ञा चार कारणों से उत्पन्न होती है - १. पेट के खाली होने से। २. क्षुधा वेदनीय कर्म के उदय से। ३. आहार कथा सुनने और आहार के देखने से। ४. निरन्तर आहार का स्मरण करने से। . इन चार बोलों से जीव के आहार संज्ञा उत्पन्न होती है।
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