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श्री स्थानांग सूत्र
परिनिदाता यानी जिसमें बार बार आलोचना की जाय । चार प्रकार की प्रव्रज्या कही गई है । यथा - धान्यपुञ्जिकृत समाना यानी साफ किये हुए धान्य के ढेर के समान अतिचारों से रहित प्रव्रज्या, धान्यविरेल्लितसमाना यानी खलिहान में फैले हुए धान्य के समान प्रव्रज्या जो थोड़ा सा प्रयत्न करने से शुद्ध हो जाय, धान्यविक्षिप्त समाना यानी खलिहान में बैलों के पैरों नीचे फैले हुए धान्य के समान प्रव्रज्या जो प्रयत्न करने से कुछ समय बाद शुद्ध होवे, धान्यसंकर्षित समाना यानी खेत में से काट कर खलिहान में लाये हुए धान्य के समान प्रव्रज्या जो बहुत प्रयत्न करने पर बहुत समय में शुद्ध होवे ।
विवेचन - 'पुयावइत्ता' के स्थान पर कहीं 'वुयावइत्ता' ऐसा पाठ है । उसका अर्थ यह है कि- उसके साथ सम्भाषण करके दीक्षा देना, जैसे कि - गौतमस्वामी ने उस किसान को दीक्षा दी थीं ।
संज्ञा-विवेचन चत्तारि सण्णाओ पण्णत्ताओ तंजहा - आहारसण्णा, भयसण्णा, मेहुणसण्णा, परिग्गहसण्णा । चउहिं ठाणेहिं आहारसण्णा समुप्पजइ, तंजहा - ओमकोट्ठयाए, छुहावेयणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं, मईए, तयट्ठोवओगेणं । चउहि ठाणेहिं भयसण्णा समुप्पज्जइ तंजहा - हीणसत्तयाए, भयवेयणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं, मईए, तयट्ठोवओगेणं । चउहि ठाणेहिं मेहुणसण्णा समुप्पजइ, तंजहा - चित्तमंससोणिययाए, मोहणिजस्स कम्मस्स उदएणं, मईए, तयट्ठोवओगेणं । चउहि ठाणेहिं परिग्गहसण्णा समुप्पजइ, तंजहा - अविमुत्तयाए लोहवेयणिजस्म कम्मस्स उदएणं, मईए तयट्टोवओगेणं । चउव्विहा कामा पण्णत्ता तंजहा - सिंगारा, कलुणा, बीभच्छा, रोहा। सिंगारा कामा देवाणं, कलुणा कामा मणुयाणं, बीभच्छा कामा तिरिक्खजोणियाणं, रोद्दा कामा णेरइयाणं॥१९६॥ .
कठिन शब्दार्थ - सण्णाओ - संज्ञाएं, आहारसण्णा - आहार संज्ञा, भयसण्णा - भयसंज्ञा, मेहुणसण्णा - मैथुन संज्ञा, परिग्गहसण्णा - परिग्रह संज्ञा, ओमकोट्ठयाए - पेट के खाली होने से, छुहावेयणिज्जस्स - क्षुधा वेदनीय, कम्मस्स - कर्म के, उदएणं - उदय से, मईए - मति से, तयट्ठोवओगेणं - निरन्तर स्मरण करने से, हीणसत्तयाए - हीन सत्त्व-शक्तिहीन होने से, चित्तमंससोणिययाए - शरीर में रक्तमांस के अधिक बढने से, अविमुत्तयाए - परिग्रह का त्याग न करने से, कामा- शब्दादि काम, सिंगारा- श्रृंगार, कलुणा - करुण, बीभच्छा - बीभत्स, रोहा - रौद्र। .. भावार्थ - संज्ञाएं चार प्रकार की कही गई हैं । यथा - आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा, परिग्रहसंज्ञा । चार कारणों से आहार संज्ञा उत्पन्न होती है । यथा - पेट के खाली होने से, क्षुधावेदनीय
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