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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 भिक्षाक यानी भिक्षा से निर्वाह करने वाले साधु कहे गये हैं । यथा - अनुस्रोतचारी यानी उपाश्रय से निकल कर अनुक्रम से भिक्षा करने वाला, प्रतिस्रोतचारी यानी उल्टे क्रम से भिक्षा करता हुआ उपाश्रय में आने वाला, अन्तश्चारी यानी उपाश्रय के अन्तिम घरों से भिक्षा लेने वाला और मध्यचारी यानी गांव के बीच के घरों से भिक्षा लेने वाला।
चार प्रकार के गोले कहे गये हैं। यथा - मोम का गोला, जो धूप लगने से ही पिघल जाता है, लाख का गोला, जो अग्नि के ताप से पिघल जाता है, लकड़ी का गोला, जो अग्नि में डालने से जल जाता है और मिट्टी का गोला, अग्नि में तपने पर जो पक कर दृढ़ बन जाता है। ये चारों गोले क्रम से मृदु, कठिन, कठिनतर और कठिनतम होते हैं। इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं। यथा - मोम के गोले के समान, लाख के गोले के समान, लकड़ी के गोले के समान और मिट्टी के गोले के समान । जैसे मुनि का उपदेश सुन कर किसी को वैराग्य उत्पन्न हुआ। बाजार में जाने पर लोगों के वचन सुन कर उसका वैराग्य उतर गया, वह मोम के गोले के समान है। कुटुम्बी जनों के वचनों को सुन कर जिसका वैराग्य उतर गया वह लाख के गोले के समान है। जो लोगों के तथा कुटुम्बीजनों के वचनों से न पिघले किन्तु स्त्री के वचनों को सुन कर पिघल जाय वह लकड़ी के गोले के समान है। जो उपरोक्त सब के वचनों को सुन कर पिघले नहीं किन्तु वैराग्य में और अधिक दृढ़ बनता जाय वह मिट्टी के गोले के समान है। चार प्रकार के गोले कहे गये हैं। यथा-लोह का गोला, कथीर का गोला, ताम्बे का गोला
और सीसे का गोला। इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं। यथा-लोहे के गोले के समान, कथीर के गोले के समान, ताम्बे के गोले के समान और सीसे के गोले के समान। ये गोले जैसे क्रमशः अधिकाधिक भारी होते हैं उसी तरह जो पुरुष कर्मों से भारी होते हैं, वे क्रमशः इनके समान कहे जाते हैं। चार प्रकार के गोले कहे गये हैं। यथा-चांदी का गोला, सोने का गोला, रत्नों का गोला और वज्ररत्न का गोला। इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं। यथा-चांदी के गोले के समान, सोने के गोले के समान, रत्नों के गोले के समान, वज्ररत्नों के गोले के समान। जैसे चांदी आदि के गोले उत्तरोत्तर अधिकाधिक कीमत वाले होते हैं उसी तरह जो पुरुष गुणों में उत्तरोत्तर अधिकाधिक होते हैं उनको क्रमशः इन गोलों की उपमा दी जाती है। चार प्रकार के पत्र यानी शस्त्र कहे गये हैं। यथा-असिपत्र यानी तलवार, करपत्र यानी करवत, क्षुरपत्र यानी उस्तरा, कदम्बचीरिका नामक शस्त्र। इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं। यथा-असिपत्र समान यानी गुरु का उपदेश सुन कर शीघ्र ही सांसारिक बन्धनों का छेदन कर दीक्षित होने वाला पुरुष। करपत्र समान यानी जैसे करवत धीरे धीरे लकड़ी को काटता है उसी तरह जो पुरुष धीरे धीरे सांसारिक बन्धनों को काटता है। क्षुरपत्र समान यानी जैसे उस्तरा केशों को काटता है उसी तरह जो पुरुष सांसारिक बन्धनों का सर्वथा छेदन नहीं कर सकता किन्तु देशविरतिपना धारण करता है वह क्षुरपत्र समान है। कदम्बचीरिकापत्र समान यानी जो मनोरथ मात्र से ही स्नेह का छेदन करता है किन्तु काया से त्याग प्रत्याख्यान नहीं कर सकता ऐसा अविरतसम्यग् दृष्टि।
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