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________________ स्थान ४ उद्देशक ४ ४१७ गोले के समान साधक चत्तारि गोला पण्णत्ता तंजहा - महुसित्थगोले, जउगोले, दारुगोले, मट्टियागोले। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - महुसित्थगोल समाणे, जउगोल समाणे, दारुगोल समाणे, मट्टियागोल समाणे । चत्तारि गोला पण्णत्ता तंजहा - अयगोले, तउगोले, तंबगोले, सीसगोले । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा- अयगोल समाणे, तउगोल समाणे, तंबगोल समाणे, सीसगोल समाणे । चत्तारि गोला पण्णत्ता तंजहा - हिरण्णगोले, सुवण्णगोले, रयणगोले, वयरगोले । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - हिरण्णगोल समाणे, सुवण्णगोल संमाणे, रयणगोल समाणे, वयरगोल समाणे। - पत्र एवं चटाई तुल्य पुरुष . चत्तारि पत्ता पण्णत्ता तंजहा - असिपत्ते, करपत्ते, खुरपत्ते, कलंबचीरियापत्ते । एवामेव चत्तारि पुरिसंजाया पण्णत्ता तंजहा - असिपत्तसमाणे, करपत्तसमाणे, खुरपत्तसमाणे, कलंबचीरियापत्तसमाणे । चत्तारि कडा पण्णत्ता तंजहा - सुंबकडे, विदलकडे, चम्मकडे, कंबलकडे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - सुंबकडसमाणे, विदलकडसमाणे, चम्मकडसमाणे, कंबलकडसमाणे॥१९०॥ .. कठिन शब्दार्थ - मच्छा - मच्छ, अणुसोयचारी- अनुस्रोतचारी, पडिसोयचारी - प्रतिस्रोत चारी, अंतचारी - अन्तश्चारी-पानी के अंत में बहने वाला, मज्झचारी - मध्यचारी-पानी के बीच में बहने वाला, भिक्खागा - भिक्षाक-भिक्षा से निर्वाह करने वाले, महुसित्थगोले - मोम का गोला, जउगोलेलाख का गोला, दारुगोले - लकड़ी का गोला, मट्टिया गोले- मिट्टी का गोला, अयगोले - लोहे का गोला, तउगोले - कथीर का गोला, तंबगोले - ताम्बे का गोला, , सीसगोले - सीसे का गोला, रयणगोले - रत्नों का गोला, वयरगोले - वज्र रत्न का गोला, पत्ता - पत्र-शस्त्र, असिपत्ते - असिपत्र-तलवार, करपत्ते - करपत्र-करवत, खुरपत्ते - क्षुरपत्र-उस्तरा, कलंबचीरियापत्ते - कदम्ब चीरिका पत्र-कदम्ब चीरिका नामक शस्त्र, सुंबकडे - शुंबकट-शुंब नामक तृण विशेष से बनी हुई चटाई, विदलकडे - बांस की बनी चटाई, चम्मकडे - चमडे से बनाई हुई चटाई, कंबलकडे - कम्बल कट-ऊन से बनी चटाई (कम्बल)। - भावार्थ - चार प्रकार के मच्छ कहे गये हैं । यथा - अनुस्रोतचारी यानी पानी के प्रवाह की तरफ बहने वाला, प्रतिस्रोतचारी यानी पानी के प्रवाह के सामने बहने वाला, अन्तश्चारी यानी पानी के अन्त में बहने वाला और मध्यचारी यानी पानी के बीच में बहने वाला । इसी तरह चार प्रकार के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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