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________________ स्थान ४ उद्देशक ३ ३९५ में आवलिका प्रविष्ट विमानों का मध्यवर्ती गोल विमान केन्द्र उड्ड विमान तथा ईषत्प्राग्भारा (सिद्धि) पृथ्वी और समय क्षेत्र अर्थात् मनुष्य लोक। ये सब पैंतालीस-पैंतालीस लाख योजन लम्बे चौड़े कहे गये हैं। ये चारों दिशा और. विदिशाओं में समान रूप से आये हुए हैं। थोकड़ा वाले इनको 'चार पेंताला' कहते हैं। जो जीव दूसरे भव में मोक्ष जा सकते हैं उनको यहां द्विशरीर कहा गया है । क्योंकि जिस भव में जो शरीर है वह एक शरीर और वहाँ से मनुष्य भव में आकर मोक्ष जावे, वह दूसरा शरीर है । इस अपेक्षा से पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, वनस्पतिकायिक और पंचेन्द्रिय जीव द्विशरीर वाले कहे गये हैं। ये द्वि शरीर वाले जीव अधोलोक तिर्छा लोक और ऊर्ध्व लोक इस प्रकार तीनों लोकों में हैं। सत्त्वदृष्टि से पुरुष भेद, प्रतिमा,जीव स्पृष्ट,कार्मणामिश्रित शरीर चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तंजहा - हिरिसत्ते, हिरिमणसत्ते, चलसत्ते, थिरसत्ते। चत्तारि सिज्जपडिमाओ पण्णत्ताओ, चत्तारि वत्थपडिमाओ पण्णत्ताओ, चत्तारि पायपडिमाओ पण्णत्ताओ, चत्तारि ठाणपडिमाओ पण्णत्ताओ। चत्तारि सरीरगा जीवफुडा पण्णत्ता तंजहा - वेउव्विए, आहारए, तेयए, कम्मए। चत्तारि सरीरगा कम्मम्मीसगा पण्णत्ता तंजहा - ओरालिए, वेउव्विए, आहारए, तेउए। चउहि अत्थिकाएहिं लोए फुडे पण्णत्ते तंजहा - धम्मत्थिकाएणं, अधम्मत्थिकाएणं, जीवत्रिकाएणं, पुग्गलत्थिकाणं। चउहिं बायरकाएहिं उववज्जमाणेहिं लोए फुडे पण्णत्ते तंजहा - पुढविकाइएहिं, आउकाइएहिं, वाउकाइएहिं, वणस्सइकाइएहिं । चत्तारि पएसग्गेणं तुल्ला पण्णत्ता तंजहा - धम्मत्थिकाए, अधम्मस्थिकाए. लोगागासे, एगजीवे॥१८०॥ कठिन शब्दार्थ - हिरिसत्ते - ही सत्त्व, हिरिमणसत्ते - हीमनसत्त्व, चलसत्ते - चल सत्त्व, थिर सत्ते- स्थिर सत्त्व, सिज्जपडिमाओ- शय्या पडिमाएं, वत्थपडिमाओ - वस्त्र पडिमाएं, पायपडिमाओपात्र अडिमाएं, ठाणपडिमाओ - स्थान पडिमाएं, जीवफुडा - जीव से स्पृष्ट, कम्मम्मीसगा - कार्मण मिश्रित, लोए फुडे - लोक स्पृष्ट, पएसग्गेणं - प्रदेशों की अपेक्षा, तुल्ला - तुल्य। भावार्थ - चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - हीसत्त्व यानी परीषह आदि आने पर लज्जा से उन्हें सहन करता है । हीमनसत्त्व यानी परीषहादि आने पर लज्जा के कारण जो मन को दृढ़ रखता है । चलसत्त्व यानी परीषह आदि आने पर जो चलित हो जाता है और स्थिरसत्त्व यानी परीषह आदि आने पर जो दृढ़ रहता है । चार प्रकार की शय्या पडिमाएं कही गई है । चार प्रकार की वस्त्र पडिमाएं कही गई है। चार प्रकार की पात्र पडिमाएं कही गई है । चार प्रकार की स्थान पडिमाएं कही गई है । चार शरीर जीव से स्पृष्ट कहे गये हैं यथा - वैक्रियक, आहारक, तैजस और कार्मण । चार शरीर कार्मण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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