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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
उत्तर - यह प्रश्न जयंती श्राविका ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से पूछा था। उसका उत्तर भगवती सूत्र शतक १२ उद्देशक २ में इस प्रकार दिया गया है।
प्रश्न - भवसिद्धियत्तणं भंते ! जीवाणं किं सभावओ परिणामओ? उत्तर - जयंती ! सभावओ, णो परिणामओ।
अर्थ - हे भगवन् ! जीवों का भवसिद्धिक पन-स्वाभाविक है या पारिणामिक ? हे जयन्ती स्वाभाविक है, पारिणामिक नहीं। तात्पर्य यह है कि - स्वभाव यह कोई हेतु या कारण नहीं होता है जैसे कल्पना कीजिये कि किसी व्यक्ति के एक लड़का और एक लड़की साथ जन्मे हैं। उनका रहन सहन और खान पान एक जैसा है। फिर करीब अठारह बीस वर्ष की उम्र हो जाने पर लड़के के तो . दाड़ी मूंछ आ जाती है और लड़की के नहीं आती। इसका क्या कारण है तो यही उत्तर होगा कि इसमें कोई कारण नहीं किन्तु ऐसा ही स्वभाव है क्योंकि लडकों के दाड़ी मूंछ आती है, लडकियों के नहीं।
प्रश्न - सम्यग् दृष्टि किसे कहते हैं? उत्तर - "सम्यग्-अविपरीता दृष्टिः-दर्शनं रुचिस्तत्त्वानि प्रति येषां ते सम्यग्दुष्टिकाः।"
अर्थ - जो जीव आदि पदार्थों को सम्यग् प्रकार से जानता है और उन पर श्रद्धा करता है। वह सम्यग्दृष्टि जीव है। . .
प्रश्न - मिथ्यादृष्टि किसे कहते हैं ? उत्तर - मिथ्यादृष्टिका:-मिथ्यात्वमोहनीयकर्मोदयादरुचितजिनवचना।
अर्थ - वीतराग भगवन्तों के द्वारा कथित जीवादि तत्वों के ऊपर जिसकी श्रद्धा विपरीत हो उसे मिथ्यादृष्टि कहते हैं।
प्रश्न - मिश्रदृष्टि (सम्यग् मिथ्यादृष्टि) किसे कहते हैं ? उत्तर-सम्यक् मिथ्या च दृष्टिर्येषां ते सम्यग्मिध्यादृष्टिका:-जिनोक्त भावान् प्रति उदासीनाः
अर्थ - जिसकी दृष्टि न सम्यग् है न मिथ्या है और जो किसी प्रकार का निर्णय नहीं कर सकता है और जिनेन्द्र भगवान् के वचनों के प्रति उदासीन है। उसे मिश्र दृष्टि कहते हैं। सन्नी जीवों में ही मिश्र दृष्टि पाई जाती है। इसकी स्थिति अन्तरर्मुहूर्त है। अन्तरर्मुहूर्त के बाद वह जीव या तो सम्यग्दृष्टि बन जाता है अथवा मिथ्यादृष्टि बन जाता है।
नारकी, देवता, तिथंच पंचेन्द्रिय और मनुष्य कुल १६ दण्डकों के जीवों में तीनों दृष्टियाँ पाई जाती हैं। पांच स्थावर (पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय) के जीव एकान्त मिथ्यादृष्टि होते हैं। तीन विकलेन्द्रियों (बेइन्द्रिय तेइन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय) में अपर्याप्त
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