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________________ ३८८ श्री स्थानांग सूत्र दरिद्री और भाव से भी दुर्गतिगामी यानी दुर्गति में जाने वाला । कोई एक पुरुष द्रव्य से दरिद्री किन्तु भाव से सुगतिगामी। कोई एक पुरुष द्रव्य से धनवान किन्तु भाव से दुर्गति गामी। कोई एक पुरुष द्रव्य से धनवान् और भाव से भी सुगतिगामी । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - कोई एक पुरुष द्रव्य से दरिद्री और भाव से दुर्गति में गया हुआ । कोई एक पुरुष द्रव्य से दरिद्री किन्तु भाव से सुगति में गया हुआ । कोई एक पुरुष द्रव्य से धनवान् किन्तु भाव से दुर्गति में गया हुआ । कोई एक पुरुष द्रव्य से धनवान् और भाव से सुगति में गया हुआ । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - कोई एक पुरुष पहले अज्ञानी और पीछे भी अज्ञानी रहा । कोई एक पुरुष पहले अज्ञानी था किन्तु पीछे ज्ञानी बन गया। कोई एक पुरुष पहले ज्ञानी था किन्तु पीछे अज्ञानी बन गया । कोई एक पुरुष पहले भी ज्ञानी था और पीछे भी ज्ञानी बना रहा । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - कोई एक पुरुष कुकर्म करने वाला और कुकर्म का ही बल रखने वाला असदाचारी और अज्ञानी अथवा रात्रि में चोरी करने वाला चोर । कोई एक पुरुष कुकर्म करने वाला होता है किन्तु ज्ञान या प्रकाश का बल रखने वाला होता है अर्थात्, असदाचारी किन्तु ज्ञानवान् अथवा दिन में चोरी करने वाला चोर । कोई एक पुरुष सत्कर्म करने वाला किन्तु अज्ञानी अथवा किसी कारण से रात्रि में घूमने वाला । कोई एक पुरुष सत्कर्म करने वाला और ज्ञानी अथवा दिन में चलने वाला पुरुष । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - कोई एक पुरुष पाप कर्म करता है और मिथ्यात्व में अथवा अन्धकार में आनन्द मानता है । कोई एक पुरुष पाप कर्म करता है किन्तु ज्ञान में अथवा सूर्य के प्रकाश में आनन्द मानता है । कोई एक पुरुष सत्कर्म करता है किन्तु अज्ञान में अथवा अन्धकार में आनन्द मानता है । कोई एक पुरुष सत्कर्म करता है और ज्ञान में अथवा सूर्य के प्रकाश में ही आनन्द मानता है । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - कोई एक पुरुष परिज्ञातकर्मा यानी ज्ञ परिज्ञा से आरम्भ परिग्रह को खराब जान कर प्रत्याख्यान परिज्ञा से त्याग करने वाला होता है किन्तु परिज्ञात संज्ञा वाला यानी सद्भावना वाला नहीं होता है, जैसे अभावितात्मा अनगार। कोई एक पुरुष परिज्ञात संज्ञा वाला होता है। किन्तु परिज्ञात कर्मा नहीं होता है, जैसे श्रावक कोई एक पुरुष परिज्ञातकर्मा भी होता है और परिज्ञाता संज्ञा वाला भी होता है, जैसे साधु । कोई एक पुरुष न तो परिज्ञातकर्मा होता है और न परिज्ञात संज्ञा वाला होता है, जैसे असंयति गृहस्थ । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - कोई एक पुरुष परिज्ञात का होता है किन्तु गृहस्थवास का त्यागी नहीं होता है, जैसे श्रावक । कोई एक पुरुष गृहस्थावास का त्यागी होता है । किन्तु परिज्ञातकर्मा नहीं होता है, जैसे द्रव्यलिङ्गी साधु । कोई एक पुरुष परिज्ञात कर्मा भी होता है और गृहस्थवास का त्यागी भी होता है, जैसे महाव्रतधारी साधु । कोई एक पुरुष न तो परिज्ञातकर्मा होता है और न गृहस्थवास का त्यागी होता है, जैसे असंयति गृहस्थ । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - कोई एक पुरुष परिज्ञात संज्ञा वाला होता है। किन्तु गृहस्थवास का त्यागी नहीं होता है, जैसे श्रावक । कोई एक पुरुष Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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