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________________ स्थान ४ उद्देशक ३ 00000000000000 000000000000 तंजा - परिण्णायकम्मे णाममेगे णो परिण्णायगिहावासे, परिण्णायगिहावासे णाममेगे णो परिण्णायकम्मे, एगे परिण्णायकम्मे वि परिण्णाय गिहावासे वि, एगे णो परिण्णायकम्मे णो परिण्णायगिहावासे । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा परिण्णायसणे णाममेगे णो परिण्णायगिहावासे, परिण्णायगिहावासे णाममेगे णो परिण्णायसण्णे, एगे परिण्णायसण्णे वि परिण्णाय गिहावासे वि । एगे णो परिण्णायसणे णो परिण्णाय गिहावासे ॥ १७७ ॥ Jain Education International - कठिन शब्दार्थ - आयंभरे आत्मा का हित करने वाला, परंभरे दूसरों का हित करने वाला, दुग्गए - दुर्गत, सुग्गए- सुगत, सुव्वए अच्छे व्रतों का पालन करने वाला, दुप्पडियाणंदे - दुष्प्रत्यानन्दकिये हुए उपकार को न जानने वाला, सुप्पडियाणंदे - सुप्रत्यानन्द- उपकार को जानने वाला, दुग्गड़गामीदुर्गतिगामी, जोइबलपलज्जणे - प्रकाश में आनंद मानने वाला, परिण्णायकमे परिज्ञात कर्मा, परिण्णायसण्णे - परिज्ञातसंज्ञा, परिण्णायगिहावासे गृहस्थवास का त्यागी । | भावार्थ - चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा कोई एक पुरुष अपना ही स्वार्थ पूरा करता है किन्तु दूसरे का कार्य नहीं करता है । स्वार्थी अथवा जिनकल्पी साधु । कोई एक दूसरों का ही हित करता है किन्तु अपना कार्य नहीं करता है, जैसे तीर्थङ्कर भगवान् । कोई एक पुरुष अपना हित भी करता है और दूसरों का हित भी करता है । जैसे स्थविर कल्पी मुनि । कोई एक पुरुष न तो आत्मा का हित करता है और न दूसरों का हित करता है, जैसे मूर्ख अथवा गुरु की आज्ञा न मानने वाला स्वच्छन्दी । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा कोई एक पुरुष द्रव्य से दुर्गत दरिद्री और भाव से भी दुर्गत यानी ज्ञानादि रत्नों से हीन, कोई एक पुरुष द्रव्य से दरिद्री किन्तु भाव से सुगत यानी ज्ञानादि रत्नों से युक्त । कोई एक पुरुष द्रव्य से सुगत यानी धनवान् और भाव से ज्ञानादि रत्नों से हीन । कोई एक पुरुष द्रव्य से धनवान् और भाव से भी ज्ञानादि रत्नों से युक्त । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - कोई एक पुरुष द्रव्य से दरिद्री और से भाव से खराब व्रत पालने वाला, कोई एक पुरुष द्रव्य से दरिद्री - किन्तु भाव से अच्छे व्रतों को पालने वाला । कोई एक पुरुष द्रव्य से धनवान् किन्तु भाव से खराब व्रत पालने वाला । कोई एक पुरुष द्रव्य से धनवान् और भाव से अच्छे व्रतों को पालने वाला । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा कोई एक पुरुष द्रव्य से दरिद्री और भाव से दुष्प्रत्यानन्द यानी किये हुए उपकार को न जानने वाला । कोई एक पुरुष द्रव्य से दरिद्री किन्तु भाव से सुप्रत्यानन्द यानी किये हुए उपकार को जानने वाला । कोई एक पुरुष द्रव्य से धनवान् किन्तु भाव से दुष्प्रत्यानन्द यानी किये हुए उपकार को न जानने वाला कोई एक पुरुष द्रव्य से धनवान् और भाव से भी सुप्रत्यानन्द यानी किये हुए उपकार को मानने वाला । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा कोई एक पुरुष द्रव्य से - - - For Personal & Private Use Only ३८७ - - - www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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