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स्थान ४ उद्देशक ३ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 णिव्विइगिच्छिए णो भेयसमावण्णे णो कलुससमावण्णे णिग्गंथं पावयणं सहइ पत्तियइ रोएइ णिग्गंथं पावयणं. सद्दहमाणे पत्तियमाणे रोएमाणे णो णं उच्चावयं णियच्छइ णो विणिघायमावजइ पढमा सुहसेज्जा । अहावरा दोच्चा सुहसेजा से णं -मुंडे जाव पव्वइए सएणं लाभेणं तुस्सइ परस्स लाभं णो आसाएइ णो पीहेइ णो पत्येइ णो अभिलसइ, परस्स लाभमणासाएमाणे जाव अणभिलसमाणे णो मणं उच्चावयं णियच्छइ णो विणिघायमावज्जइ दोच्चा सुहसेज्जा । अहावरा तच्चा सुहसेजा, से णं मुंडे जाव पव्वइए दिव्वमाणुस्सए कामभोए णो आसाएइ जाव णो अभिलसइ दिव्वमाणुस्सए कामभोए अणासाएमाणे जाव अणभिलसमाणे णो मणं उच्चावयं णिय छइ णो विणिघायमावजइ तच्चा सुहसेज्जा । अहावरा चउत्था सुहसेज्जा, से गं मुंडे जाव पव्वइए तस्स णं एवं भवइ - जइ ताव अरिहंता भगवंतो हट्ठा आरोग्गा बलिया कल्लसरीरा अण्णयराइं, ओरालाई, कल्लाणाई, विउलाई, पयत्ताई, पग्गहियाई, महाणुभागाई, कम्मक्खय कारणाई, तवोकम्माइं, पडिवज्जति किमंग पुण अहं अब्भोवगमिओवक्कमियं वेयणं णो सम्मं सहामि खमामि तितिक्खेमि अहियासेमि ममं च णं अब्भोवगमिओवक्कमियं वेयणं सम्ममसहमाणस्स अक्खममाणस्स अतितिक्खमाणस्स अणहियासेमाणस्स किं मण्णे कज्जइ ? एगंतसो मे पावे कम्मे कजइ, ममं च णं अब्भोवगमिओवक्कमियं वेयणं सम्म सहमाणस्स जाव अहियासेमाणस्स किं मण्णे कज्जइ ? एगंतसो मे णिजरा कज्जई, चउत्था सुहसेज्जा॥१७५॥ - कठिन शब्दार्थ - सुहसेज्जा - सुखशय्या, णिव्विइगिच्छिए - विचिकित्सा रहित, हट्ठा - हृष्ट, आरोग्गा - नीरोग, बलिया - बलवान्, कल्लसरीरा - स्वस्थ शरीर वाले, पयत्ताई- उत्कृष्ट, महाणुभागाइ- महा प्रभावशाली, पग्गहियाइ-आंदर भाव से ग्रहण किये हुए, अब्भोवगमिओवक्कमियंआभ्युपगमिकी और औपक्रमिकी, सम्ममसहमाणस्स - समभाव पूर्वक सहन न करने से, अतितिक्खमाणस्स - तितिक्षा न करने से, अणहियासेमाणस्स - धैर्यपूर्वक सहन न करने से । . भावार्थ - ऊपर बताई हुई दुःखशय्या से विपरीत सुखशय्या जाननी चाहिए । वे इस प्रकार हैं - चार सुख शय्याएं कही गई हैं । यथा - उनमें पहली सुखशय्या यह है - कोई पुरुष मुण्डित होकर गृहस्थावास को छोड़ कर अनगार धर्म में प्रवजित होकर निर्ग्रन्थ प्रवचनों में शंका रहित, कांक्षा रहित
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