SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 393
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७६ श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 गणहरे इ वा गणावच्छेए इ वा जेसिं पभावेणं मए इमा एयारूवा दिव्या देविड्डी दिव्या देवजुई लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया, तं गच्छामि णं ते भगवए वंदामि जाव पज्जुवासामि । अहुणोववण्णे देवे देवलोएसु अमुच्छिए जाव अणझोववण्णे, तस्स णं एवं भवइ - अत्थि खलु माणुस्सए भवे णाणी इ वा तवस्सी इ वा अइदुक्कर दुक्करकारए, तं गच्छामि णं ते भगवए वंदामि जाव पज्जुवासामि । अहुणोववण्णे देवे देवलोएसु अमुच्छिए जाव अणज्झोववण्णे तस्स णं एवं भवइ - अस्थि णं मम माणुस्सए भवे माया इवा, पिया इवा, भाया इवा, भज्जा इवा, भइणी.इवा, पुत्ता इवा, धूया इवा, सुण्हा इवा, तं गच्छामि णं तेसिमंतियं पाउब्भवामि पासंतु ता मे इममेयारूवं दिव्वं देविड्डिं दिव्वं देवजुइं लद्धं पत्तं अभिसमण्णागयं । अहुणोववण्णे देवे देवलोएसु अमुच्छिए जाव अणझोववण्णे, तस्स णं एवं भवइ - अत्थि णं मम माणुस्सए भवे मित्ते इवा, सही इ वा, सुही इवा, सहाए इवा, संगए इवा, तेसिंच णं अम्हे अण्णमण्णस्स संगारे पडिसुए भवइ, जो मे पुट्विं चयइ से संबोहेयव्वे । इच्चेएहि चउहिं ठाणेहिं संचाएइ हव्वमागच्छित्तए॥१७२॥ कठिन शब्दार्थ - अहुणोववण्णे - अधुना (तत्काल) उत्पन्न हुआ, हव्वं - शीघ्र, आगच्छित्तएआने के लिए, गिद्धे - गृद्ध, गढिए - आसक्त, अज्झोववण्णे - तल्लीन बना हुआ, आढाइ - आदर करता है, परियाणाइ - अच्छा जानता है, ठिइपगप्पं - स्थिति प्रकल्प, वोच्छिण्णे - नष्ट हो जाता है, संकेते - संक्रांति (लग गया), पवत्तीए - प्रवर्तक, गणावच्छेए - गणावच्छेदक, अभिसमण्णागया - सन्मुख उपस्थित हुई है, अइदुक्करदुक्करकारए - कठिन से कठिन क्रिया करने वाले, सही - सखा, सुही- सुहृत्-हितैषी, सहाए - सहायक, संगए - संगत-परिचित, संगारे - संकेत, संबोहेयव्वे - संबोधित करना चाहिए। ___ भावार्थ - देवलोक में तत्काल उत्पन्न हुआ देव मनुष्य लोक में शीघ्र आने की इच्छा करता है किन्तु चार कारणों से शीघ्र आने में समर्थ नहीं होता है । यथा - १. देवलोकों में तत्काल उत्पन्न हुआ देव दिव्य कामभोगों में मूछित, गृद्ध, आसक्त और तल्लीन बन जाता है । इसलिए वह मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों का आदर नहीं करता है, इन्हें सारभूत नहीं जानता है । २. देवलोकों में तत्काल उत्पन्न हुआ देव दिव्य कामभोगों में मूछित, गृद्ध, आसक्त और तल्लीन बन जाता है । इसीलिए उसका मनुष्य सम्बन्धी प्रेम नष्ट हो जाता है और दिव्य संक्रान्ति हो जाती है अर्थात् देवसम्बन्धी प्रेम उत्पन्न हो जाता है । ३. देवलोकों में तत्काल उत्पन्न हुआ देव दिव्य कामभोगों में मूछित, गृद्ध, आसक्त और तल्लीन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy