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... श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 सव्वत्थसमा झल्लरिसंठाणसंठिया दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, इक्कतीसं जोयणसहस्साई छच्च तेवीसे जोयणसए परिक्खेवेणं सव्वरयणामया, अच्छा जाव पडिरूवा । तत्थ णंजे से उत्तरपुरच्छिमिल्ले रइकरगपव्वए तस्स णं चउद्दिसिं ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो चउण्हं अग्गमहिसीणं जंबूद्दीवपमाणाओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ तंजहा-: णंदुत्तरा, णंदा, उत्तरकुरा, देवकुरा । कण्हाए, कण्हराईए, रामाए, रामरक्खियाए । तत्थ णं जे से दाहिण पुरच्छिमिल्ले रइकरगपव्वए, तस्स णं चउद्दिसिं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो चउण्हं अग्गमहिसीणं जंबूद्दीवपमाणाओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ तंजहा - सुमणा, सोमणसा, अच्चिमाली, मणोरमा, पउमाए, सिवाए, सईए, अंजूए । तत्थ णं जे से दाहिण पच्चत्थिमिल्ले रइकरगपव्वए, तस्स णं चउहिसिं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो चउण्हं अग्गमहिसीणं जंबूद्दीवपमाणमित्ताओं चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ तंजहा - भूया भूयवडिंसा, गोथूभा, सुदंसणा, अमलाए अच्छराए णवमियाए रोहिणीए। तत्थ णं जे से उत्तरपच्चत्थिमिल्ले रइकरगपव्वए, तस्स णं चउद्दिसिं ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो चउण्हं अग्गमहिसीणं जंबूद्दीव पमाणमित्ताओ चत्तारि रायहाणीओ पण्णत्ताओ तंजहा - रयणा, रयणुच्चया, सव्वरयणा, रयणसंचया, वसुए, वसुगुत्ताए, वसुमित्ताए वसुंधराए॥१६३॥
कठिन शब्दार्थ - तयाणंतरं - उसके बाद, परिहाएमाणे - घटते हुए, उवरि - ऊपर, मूलेमूल में, विच्छिण्णा - विस्तृत, संखित्ता- संकुचित, गोपुच्छसंठाण संठिया - गाय के पूंछ के आकार वाले, अच्छा - निर्मल, सहा- श्लक्ष्ण, लण्हा - लक्ष्ण-स्निग्ध, घट्ठा - घृष्ट, मट्ठा- मृष्ट, णीरया - नीरज-रज रहित, णिप्पंका - निष्पंक, णिक्कंकडच्छाया - निर्मल शोभा वाले, सप्पभा - स्वयं प्रभा वाले, समिरीया- समरिचि-किरणों वाले, संउज्जोया - सउद्योत-उद्योत वाले, पासाईया- प्रासादीयमन को प्रसन्न करने वाले, दरिसणीया - दर्शनीय, अभिरूवा - अभिरूप-कमनीय, पंडिरूवा- प्रतिरूप, बहुसमरमणिज भूमिभागा - बहुत समान रमणीय भूमि भाग, सिद्धाययणा - सिद्धायतन, मुहमंडवा - मुख मण्डप, पेच्छाघरमंडवा - प्रेक्षागृह मण्डप, वइरामया - वप्रमय, अक्खाडगा - अखाडे, मणिपेढियाओ - मणि पीठिकाएं, विजयदूसा - विजय दूष्य, कुंभिका - कुम्भ प्रमाण, मुत्तादामा - मुक्तादाम-मोतियों की माला, संपरिक्खित्ता - वेष्टित, चेइयथूभा - चैत्य स्तूप, सपलियंक णिसण्णाओ- पर्यंक आसन से बैठी हुई, महिंदल्झया - महेन्द्र ध्वजा, पुक्खरणीओ - पुष्करणियां, असोगवण्णं - अशोक वन, सतवण्णवणं- सप्तपर्ण वन तिसोवाण पडिरूवगा- त्रिसोपान प्रतिरूपक।
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