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स्थान ४ उद्देशक २
देना चाहिए। चुल्लहिमवान् पर्वत से चारों विदिशाओं में लवणसमुद्र में सात सात अन्तर द्वीप हैं । इस तरह चुल्लहिमवान् की चारों विदिशाओं में अट्ठाईस अन्तर द्वीप हैं । इसी प्रकार शिखरी पर्वत से भी चारों विदिशाओं में अट्ठाईस अन्तर द्वीपं हैं । इस प्रकार कुल ५६ अन्तर द्वीप हैं । उन अन्तर द्वीपों में अन्तरद्वीप के नाम वाले ही युगलिया मनुष्य रहते हैं ।
विवेचन- - अन्तर द्वीप लवण समुद्र के भीतर होने से इनको अन्तर द्वीप कहते हैं । उनमें रहने वाले मनुष्यों को आन्तरद्वीपिक कहते हैं। जम्बूद्वीप में भरत क्षेत्र और हैमवत क्षेत्र की मर्यादा करने वाला चुल्लहिमवान् पर्वत है। वह पर्वत पूर्व और पश्चिम में लवण समुद्र को स्पर्श करता है। उस पर्वत के पूर्व और पश्चिम के चरमान्त से चारों विदिशाओं (ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य) में लवण समुद्र में तीन सौ तीन सौ योजन जाने पर प्रत्येक विदिशा में एकोरुक आदि एक द्वीप आता है। वे द्वीप गोल हैं। उनकी लम्बाई चौड़ाई तीन सौ तीन सौ योजन की है। परिधि प्रत्येक की ९४९ योजन से कुछ कम है। इन द्वीपों से चार सौ - चार सौ योजन लवण समुद्र में जाने पर क्रमशः पांचवा, छठा, सातवाँ और आठवाँ द्वीप आते हैं। इनकी लम्बाई चौड़ाई चार सौ चार सौ योजन की है। ये सभी गोल हैं। इनकी प्रत्येक की परिधि १२६५ योजन से कुछ कम हैं। इसी प्रकार इनसे आगे क्रमशः पांच सौ, छह सौ, सात सौ आठ सौ, नव सौ योजन जाने पर क्रमशः चार-चार द्वीप आते जाते हैं। इनकी लम्बाई चौड़ाई पांच सौ से लेकर नव सौ योजन तक क्रमशः जाननी चाहिये। ये सभी गोल हैं । तिगुनी से कुछ अधिक परिधि है। इस प्रकार चुल्लहिमवान् पर्वत की चारों विदिशाओं में अट्ठाईस अन्तर द्वीप हैं।
जिस प्रकार चुल्लहिमवान् पर्वत की चारों विदिशाओं में अट्ठाईस अन्तरद्वीप कहे गये हैं उसी प्रकार शिखरी पर्वत की चारों विदिशाओं में भी अट्ठाईस अन्तरद्वीप हैं। जिनका वर्णन भगवती सूत्र के दसवें शतक के सातवें उद्देशक से लेकर चौंतीसवें उद्देशे तक २८ उद्देशकों में किया गया है। उनके नाम आदि सब समान हैं।
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जीवाजीवाभिगम और पण्णवणा आदि सूत्रों की टीका में चुल्लहिमवान् और शिखरी पर्वत की चारों विदिशाओं में चार-चार दाढाएं बतलाई गई हैं उन दाढाओं के ऊपर अन्तर द्वीपों का होना बतलाया गया है। किन्तु यह बात सूत्र के मूल पाठ से मिलती नहीं है। क्योंकि इन दोनों पर्वतों की जो लम्बाई आदि बतलाई गई है वह पर्वत की सीमा तक ही आई है। उसमें दाढाओं की लम्बाई आदि नहीं बतलाई गई है। यदि इन पर्वतों की दाढाएं होती तो उन पर्वतों की हद लवण समुद्र में भी बतलाई जाती । लवण समुद्र में भी दाढाओं का वर्णन नहीं है। इसी प्रकार भगवती सूत्र के मूल पाठ में तथा टीका में भी दाढाओं का वर्णन नहीं है। ये द्वीप विदिशाओं में टेढे आये हैं इन टेढे टेढे शब्दों को बिगाड कर दाढाओं की कल्पना कर ली गई मालूम होती है। आगम के अनुसार दाढायें किसी भी प्रकार सिद्ध नहीं होती हैं।
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