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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
कठिन शब्दार्थ - कूडा - कूट, रयणुच्चए - रत्नोच्चय, उत्तरकूले - उत्तर किनारे पर, वक्खारपव्वया - वक्षस्कार पर्वत, भहसाल - भद्रशाल, णंदण - नंदन, सोमणस - सोमनस, पंडगवणेपंडगवन, पंडुकंबलसिला - पाण्डु कम्बल शिला, अइपंडुकंबल सिला - अति पाण्डु कम्बल शिला, रत्तकंबलसिला - रक्त कम्बल शिला, अइरत्तकंबलसिला - अतिरक्त कम्बल शिला, मंदरचूलियत्तिमंदर चूलिका तक।
भावार्थ - मानुष्योत्तर पर्वत के चारों विदिशाओं में चार कूट कहे गये हैं यथा - पूर्व दक्षिण यानी ईशान कोण में रत्नकूट, दक्षिण पश्चिम यानी आग्नेय कोण में रत्नोच्चय कूट, पूर्व उत्तर यानी नैऋत्य कोण में सर्वरत्न कूट और पश्चिम उत्तर यानी वायव्य कोण में रत्न संचय कूट । इस जम्बूद्वीप के भरत
और ऐरवत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी का सुषमसुषमा नामक आरा चार कोडाकोडी सागरोपम का था । . इस जम्बूद्वीप के भरत और ऐरवत क्षेत्रों में इस उत्सर्पिणी का सुषमसुषमा आरा जघन्य चार कोडाकोडी सागरोपम काल का था । इस जम्बूद्वीप के भरत और ऐरवत क्षेत्रों में आगामी उत्सर्पिणी का सुषमसुषमा आरा चार कोडाकोडी सागरोपम काल का होगा । इस जम्बूद्वीप में देवकुरु और उत्तरकुरु को छोड़ कर चार अकर्मभूमियाँ कही गई हैं यथा - हेमवय, एरण्णवय, हरिवर्ष, रम्यकवर्ष । चार वृत्त यानी गोल वैताढ्य पर्वत कहे गये हैं यथा - शब्दापाती, विकटापाती, गन्धापाती और माल्यवान् नामक । उन पर्वतों पर महाऋद्धि सम्पन्न यावत् एक पल्योपम की स्थिति वाले चार देव रहते हैं यथा - स्वाति, प्रभास, अरुण और पद्म । इस जम्बूद्वीप में चार महाविदेह क्षेत्र कहे गये हैं यथा - पूर्वविदेह, पश्चिमविदेह, देवकुरु उत्तरकुरु । सभी निषध और नीलवान् पर्वत चार सौ योजन ऊंचे और चार सौ गाऊ यानी कोस धरती में ऊंडे कहे गये हैं । इस जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के पूर्व में सीता महानदी के उत्तर किनारे पर चार वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं यथा - चित्रकूट, पद्मकूट, नलिनकूट और एकशैल । इस जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के पूर्व में सीता महानदी के दक्षिण किनारे पर चार वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं यथा - त्रिकूट, वैश्रमण कूट, अञ्जन, मातञ्जन । इस जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के पश्चिम दिशा में सीतोदा महानदी के दक्षिण किनारे पर चार वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं यथा - अंकावती, पद्मावती, आशीविष, सुखावह । इस जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के पश्चिम दिशा में सीतोदा महानदी के उत्तर किनारे पर चार वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं यथा - चन्द्रपर्वत, सूर्यपर्वत, देवपर्वत नागपर्वत । इस जम्बूद्वीप में चारों विदिशाओं में चार वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं यथा - सोमनस, विदयुत्प्रभ, गंधमादन, माल्यवान् । इस जम्बूद्वीप में महाविदेह क्षेत्र में जघन्य पद में यानी कम से कम एक साथ चार तीर्थङ्कर, चार चक्रवर्ती, चार बलदेव, चार वासुदेव उत्पन्न हुए थे और उत्पन्न होते हैं तथा उत्पन्न होवेंगे । इस जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत पर चार वन कहे गये हैं यथा - भद्रशाल वन, नन्दनवन, सोमनस वन और पण्डक वन । इस जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत पर पण्डक वन में चार अभिषेक शिलाएं यानी तीर्थङ्कर भगवान् का जन्माभिषेक करने की शिलाएं
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