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________________ ३१४ श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 सम्यक् प्रकार से भावित नहीं करता है, जो पीछली रात्रि के समय में धर्म जागरणा नहीं करता है, जो प्रासुक एषणीय थोड़ा थोड़ा और सामुदानिक गोचरी से प्राप्त होने वाले आहार की सम्यक् प्रकार से गवेषणा नहीं करता है, इन चार कारणों से साधु अथवा साध्वियों को इस समय में उत्पन्न होते हुए केवलज्ञान केवलदर्शन उत्पन्न नहीं होते हैं। चार कारणों से साधु अथवा साध्वी को उत्पन्न होते हुए केवलज्ञान केवलदर्शन उत्पन्न हो जाते हैं। यथा - जो स्त्री कथा, भक्त कथा, देश कथा और राज कथा नहीं करता है, जो विवेक यानी अशुद्ध आहार का त्याग करने से और कायोत्सर्ग करने से अपनी आत्मा को सम्यक् रूप से भावित करता है, जो पीछली रात्रि के समय में धर्मजागरणा करता है, जो प्रासुक एषणीय थोड़ा थोड़ा सामुदानिक भिक्षाचर्या से प्राप्त होने वाले आहार की सम्यक् प्रकार से गवेषणा करता है इन चार कारणों से साधु अथवा साध्वी को उत्पन्न होते हुए केवलज्ञान केवलदर्शन उत्पन्न हो जाते हैं। स्वाध्याय अस्वाध्याय काल . . णो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा चउहिं महापाडिवएहिं सज्झायं करित्तए तंजहा - आसाढपाडिवए, इंदमहपाडिवए, कत्तियपाडिवए सुगिम्हपाडिवए । णो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा चउहिं संझाहिं सज्झायं करित्तए तंजहा - पढमाए, पच्छिमाए, मज्झण्हे, अद्धरए । कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा चाउक्कालं सज्झायं करित्तए तंजहा - पुवण्हे, अवरण्हे, पओसे, पच्चूसे। ... लोक स्थिति, पुरुष के भेद चउव्विहा लोगट्टिई पण्णत्ता तंजहा - आगासपइट्ठिए वाए, वायपइट्ठिए उदही, उदहि पइट्ठिया पुढवी, पुढविपइट्ठिया तसा थावरा पाणा । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - तहे णाममेगे, णो तहे णाममेगे, सोवत्थी णाममेगे, पहाणे णाममेगे । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - आयंतकरे णाममेगे णो परंतकरे, परंतकरे णाममेगे णो आयंतकरे, एगे आयंतकरे वि परंतकरे वि, एगे णो आयंतकरे णो परंतकरे । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - आयंतमे णाममेगे णो परंतमे, परंतमे णाममेगे णो आयंतमे, एगे आयंतमे वि परंतमे वि, एगे णो आयंतमे णो परंतमे । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - आयंदमे णाममेगे णो परंदमे, परंदमे णाममेगे णो आयंदमे, एगे आयंदमे वि परंदमे वि, एगे णो आयंदमे णो परंदमे । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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