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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 प्रणिधान यानी प्रयोग कहा गया है यथा - मन प्रणिधान, वचन प्रणिधान, काय प्रणिधान और उपकरण प्रणिधान । इसी प्रकार ये चारों प्रणिधान नैरयिकों से लेकर वैमानिक देवों तक सब पञ्चेन्द्रियों में पाये जाते हैं, एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रियों में ये चारों नहीं पाये जाते हैं । चार प्रकार के सुप्रणिधान कहे गये हैं। यथा - मन सुप्रणिधान यावत् ठपकरण सुप्रणिधान । इस प्रकार ये चार सुप्रणिधान सिर्फ संयत मनुष्यों में ही पाये जाते हैं । चार प्रकार के दुष्प्रणिधान कहे गये हैं । यथा - मनदुष्प्रणिधान यावत् उपकरण दुष्प्रणिधान इस प्रकार ये चारों दुष्प्रणिधान नैरयिकों से लेकर वैमानिक देवों तक सभी पञ्चेन्द्रियों में पाये जाते हैं । एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रियों में ये चारों नहीं पाये जाते हैं ।
विवेचन - यहाँ पर 'अस्ति' शब्द का अर्थ प्रदेश है और काय का अर्थ है राशि । प्रदेशों की राशि वाले द्रव्यों को अस्तिकाय कहते हैं। चार अस्तिकाय अचेतन होने से अजीवकाय कही गयी है। यथा - धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय । अस्तिकाय मूर्त और अमूर्त होती है। अतः अमूर्त अस्तिकाय के प्रतिपादन के लिये अरूपी अस्तिकाय का सूत्र कहा है जो चार प्रकार की कही गयी है। यथा - धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और जीवास्तिकाय ।
. प्रणिधि - प्रणिधान अर्थात् प्रयोग। प्रणिधान चार प्रकार का कहा है - १. मन प्रणिधान - आर्त, रौद्र, धर्म आदि रूप मन का प्रयोग मन प्रणिधान, इसी प्रकार २. वचन प्रणिधान और ३. काय प्रणिधान जानना चाहिए ४. उपकरण - लौकिक और लोकोत्तर रूप वस्त्र पात्रादि संयम और असंयम के उपकार के लिये प्रणिधान - प्रयोग, उपकरण प्रणिधान है। जिस प्रकार नैरयिकों के लिये कहा गया है उसी प्रकार वैमानिक, पर्यन्त जो पंचेन्द्रिय हैं उनके लिए भी चार प्रणिधान,कहे हैं। एकेन्द्रिय आदि में मन संभव नहीं होने से प्रणिधान भी असंभव है। सुप्रणिधान और दुष्प्रणिधान के भेद से प्रणिधान दो प्रकार का कहा गया है। संयम के शुभ हेतु के लिये मन आदि का व्यापार सुप्रणिधान है। सुप्रणिधान चारित्र. की परिणति रूप होने से संयतियों में ही होता है असंयम के लिये मन आदि का व्यापार दुष्प्रणिधान है।
___पुरुष विश्लेषण चत्तारि पुरिस जाया पण्णत्ता तंजहा - आवायभद्दए णाममेगे णो संवासभइए, संवासभहए णाममेगे णो आवायभहए, एगे आवायभइए वि संवासभइए वि, एमे णो आवायभइए णो वा संवासभहए । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - अप्पणो णाममेगे वजं पासइ णो परस्स, परस्स णाममेगे वजं पासइ । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - अप्पणो णाममेगे वजं उदीरेइ णो परस्स । अप्पणो णाममेगे वज्ज उवसामेइ णो परस्स । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - अब्भुटेइ णाममेगे णो अब्भुटावेइ । एवं वंदइ णाममेगे णो वंदावेइ एवं सक्कारेइ, सम्माणेइ, पूएइ, वाएइ,
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