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श्री स्थानांग सूत्र
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१. भद्रा यानी पूर्व आदि चारों दिशाओं में प्रत्येक में चार चार पहर कायोत्सर्ग करना यानी सोलह पहर तक कायोत्सर्ग करना। यह पडिमा दो दिन में पूर्ण होती है। २. सुभद्रा । ३. महाभद्रा यानी चारों दिशाओं में आठ आठ पहर तक कायोत्सर्ग किया जाता है। यह पडिमा चार दिन में पूर्ण होती हैं। ४. सर्वतोभद्रा यानी दशों दिशाओं में चार चार पहर तक कायोत्सर्ग किया जाता है। यह पडिमा दस दिनों में पूर्ण होती है ।
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चार प्रकार की पडिमाएं कही गई हैं यथा क्षुद्र यानी लघु मोकपडिमा, यह सोलह भक्त यानी सात दिन में पूर्ण होती है । महती मोकपडिमा, यह अठारह भक्त यानी आठ उपवास में पूर्ण होती है । यवमध्या । जैसे जौ दोनों किनारों पर पतला और बीच में मोटा होता है उसी तरह आहार की दत्ति अथवा कवलों की संख्या क्रमशः बढाई जावे और बीच में पहुंच कर फिर क्रमशः घटाई जावे वह यवमध्य पडिमा कहलाती है । वज्रमध्या, जो वज्र की तरह दोनों किनारों पर मोटी हो किन्तु बीच में पतली हो वह वज्रमध्यपडिमा कहलाती है ।
विवेचन - उदीरेइ का अर्थ है- उदीरणा करना । अथवा उपशान्त हुए क्रोधादिक को फिर उदीरणा करना यानी जागृत करना । अथवा बन्धे हुए कर्मों की उदीरणा करना । पडिमा यानी प्रतिज्ञा, अभिग्रह विशेष । उपरोक्त सूत्र में ४-४ प्रकार की पडिमाओं का कथन किया गया है । सुभद्रा पडिमा के लिए टीकाकार श्री अभयदेवसूरि लिखते हैं "सुभद्राऽप्येवंभूतैव सम्भाव्यते, न च दृष्टेति न लिखितेति'' अर्थात् सुभद्रापडिमा भी भद्रा पडिमा के समान ही मालूम पड़ती है किन्तु सुभद्रापडिमा का स्वरूप हमारे देखने में नहीं आया है । इसलिए मैंने इसका स्वरूप नहीं लिखा है ।
अस्तिकाय - अजीवकाय
चारि अतिथकाया अजीवकाया पण्णत्ता तंजहा - धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, पोग्गलत्थिकाए । चत्तारि अत्थिकाया अरूविकाया पण्णत्ता तंजहाधम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, जीवत्थिकाए ।
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फल और मनुष्य
चत्तारि फला पण्णत्ता तंजहा - आमे णाममेगे आममहुरे, आमे णाममेगे पक्कमहुरे, पक्के णाममंगे आममहुरे, पक्केणाममेगे पक्कमहुरे । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - आमे णाममगे आममहुरफलसमाणे ।
सत्य व झूठ
चव्विहे सच्चे पण्णत्ते तंजहा
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काउज्जुयया, भासुज्जुयया, भावुज्जुयया,
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