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स्थान ४ उद्देशक १
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कर्म प्रकृतियों का उपचय आदि
जीवाणं चउहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्म पयडीओ चिणिंसु तंजहा- कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोहेणं, एवं जाव वेमाणियाणं । एवं चिणंति एस दंडओ, एवं चिणिस्संति एस दंडओ, एवमेएणं तिण्णि दंडगा । एवं उवचिणिंसु उवचिणंति उवचिणिस्संति, बंधिसु, बंधंति, बंधिस्संति, उदीरिंसु, उदीरिंति, उदीरिस्संति, वेदेंसु, वेदंति, वेदिस्संति, जिरेंसु णिज्जति णिज्जरिस्संति जाव वेमाणियाणं, एवमेक्केक्के पए तिण्णि तिणि दंडगा भाणियव्वा जाव णिज्जरिस्संति ।
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चार प्रकार की प्रतिमाएँ
चत्तारि पडिमाओ पण्णत्ताओ तंजहा- समाहि पडिमा, उवहाण पडिमा, विवेग पडिमा विउस्सग्ग पडिमा । चत्तारि पडिमाओ पण्णत्ताओ तंजहा - भद्दा, सुभद्दा, र.हाभद्दा, सव्वओ भद्दा । चत्तारि पडिमाओ पण्णत्ताओ तंजहा - खुड्डिया मोयपडिमा, महल्लिया मोयपडिमा, जवमज्झा, वइरमज्झा ॥ १३३ ॥
कठिन शब्दार्थ - कम्मपयडीओ - कर्मों की प्रकृतियाँ, समाहि पडिमा समाधि पडिमा उवहाण पडिमा - उपधान पडिमा विउस्सग्ग पडिमा व्युत्सर्ग पडिमा भद्दा भद्रा, सुभद्दा सुभद्रा, महाभद्दामहाभद्रा, सव्वओभद्दा - सर्वतोभद्रा, खुड्डिया मोयपडिमा क्षुद्र मोक पडिमा महल्लिया मोयपडिमा - महती मोक पडिमा, जवमज्झा यवमध्या, वइरमज्झा वज्रमध्या ।
भावार्थ - जीवों ने क्रोध, मान, माया, लोभ इन चार कषायों में आठों ही कर्मों की प्रकृतियों का संचय किया था, संचय करते हैं और संचय करेंगे। इस प्रकार भूत, भविष्यत् और वर्तमान इन तीनों काल सम्बन्धी कथन कर देना चाहिए और इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिक देवों तक चौबीस ही दण्डक में कथन कर देना चाहिए । इसी प्रकार उपचय किया है था, करते हैं और करेंगे । बन्ध किया था, करते हैं और करेंगे । उदीरणा की थी, करते हैं और करेंगे । वेदन किया था, करते हैं और करेंगे । निर्जरा की थी, करते हैं और करेंगे। इस प्रकार निर्जरा की थी, निर्जरा करते हैं, निर्जरा करेंगे। इस क्रिया पद तक प्रत्येक में भूत, भविष्यत् और वर्तमान इन तीनों काल सम्बन्धी कथन कर देना चाहिये नैरयिकों से लेकर वैमानिक देवों तक चौबीस ही दण्डक में उपरोक्त प्रकार से कथन कर देना चाहिए । चार प्रकार की पडिमाएं कही गई हैं यथा
श्रुत चारित्र विषयक प्रतिज्ञा सो समाधि पडिमा,
उपधान आदि तप विषयक प्रतिज्ञा सो उपधान पडिमा अशुद्ध आहार पानी आदि का त्याग करना सो विवेकपडिमा और कायोत्सर्ग करना सो व्युत्सर्गपडिमा । चार प्रकार की पहिमाएं कही गई हैं यथा
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