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________________ __ स्थान ४ उद्देशक १ २५९ भावार्थ - चार प्रकार की तृण वनस्पतिकाय कही गई है यथा - जिसके अग्रभाग में बीज होते हैं वह अग्रबीज, जैसे कोरण्टक आदि। जिसके मूल भाग में बीज होते हैं वह मूलबीज जैसे उत्पल कन्द आदि। जिसकी पर्व यानी गांठ में बीज हो जैसे ईख आदि। जिसके स्कन्ध भाग में यानी धड़ में बीज हो वह स्कन्ध बीज जैसे सल्लकी आदि। नरक में तत्काल उत्पन्न हुआ नैरयिक शीघ्र मनुष्य लोक में आने की इच्छा करता है किन्तु चार कारणों से शीघ्र आने में समर्थ नहीं होता है। यथा - नरक में अति प्रबल रूप से उत्पन्न हुई अथवा एक दम सामने आई हुई अथवा अत्यन्त महान् वेदना को वेदता हुआ तत्काल उत्पन्न हुआ वह नैरयिक शीघ्र मनुष्य लोक में आने की इच्छा करता है किन्तु आने में समर्थ नहीं होता है। नरक में नरकपाल यानी अम्ब अम्बरीष आदि भवनपति जाति के परमाधार्मिक देवों द्वारा बारम्बार पीड़ित किया जाता हुआ तत्काल उत्पन्न हुआ नैरयिक मनुष्य लोक में शीघ्र आने की इच्छा करता है किन्तु आने में समर्थ नहीं होता है। नरक में तत्काल उत्पन्न हुआ नैरयिक मनुष्य लोक में आने की इच्छा करता है किन्तु नरक में वेदने योग्य अत्यन्त अशुभ नाम कर्म आदि और असातावेदनीय कर्म का क्षय न होने से उसको न वेदने से और उसकी निर्जरा न होने से नैरयिक मनुष्य लोक में आने में समर्थ नहीं होता है। नरक में तत्काल उत्पन्न हुआ नैरयिक मनुष्य लोक में शीघ्र आने की इच्छा करता है किन्तु नरक की जो आयु बन्धी है उस आयुकर्म का क्षय न होने से आने में समर्थ नहीं होता है। इन चार कारणों से तत्काल उत्पन्न हुआ नैरयिक मनुष्य लोक में आने में समर्थ नहीं होता है। साध्वियों को चार साड़ियां यानी ओढने की पछेवड़ियाँ धारण करना(पास में रखना) और पहनना कल्पता है। यथा - दो हाथ विस्तार वाली एक, तीन हाथ विस्तार वाली दो और चार हाथ विस्तार वाली एक। उनमें से दो हाथ विस्तार वाली को उपाश्रय में ओढे, तीन हाथ की दो में से एक को गोचरी जाते समय ओढे और एक को बाहर स्थण्डिल भूमि जाते समय ओढे। चार हाथ विस्तार वाली को समवसरण यानी व्याख्यान के समय ओढे । विवेचन - वनस्पति ही जिनका काय (शरीर) है वे वनस्पतिकायिक कहलाते हैं। तृण जाति की वनस्पति को तृण वनस्पतिकाय कहते हैं। तृण वनस्पतिकाय चार प्रकार की कही है - १. अग्रबीज - ऐसी वनस्पति जिसका बीज अग्रभाग पर होता है जैसे- कोरंट का वृक्ष २. मूल बीज-जिसका बीज मूल भाग में होता है जैसे - कंद आदि ३. पर्वबीज - जिस का बीज पर्व (गांठ) में होता है जैसे गन्ना आदि ४ स्कन्ध बीज- जिसका बीज स्कन्ध में होता है जैसे बड़ पीपल आदि। . यहां चौथा स्थानक होने से चार प्रकार की तृण वनस्पतिकाय बतलाई गई है किन्तु बीज रूह, सम्मूच्छिम आदि और भी वनस्पति के भेद हैं। चार कारणों से नरक में तत्काल उत्पन्न हुआ नैरायिक जीव मनुष्य लोक में आने की इच्छा करता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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