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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 आठ प्रकार की हैं और १२ प्रकार के तप की अपेक्षा बारह प्रकार की और सकाम निर्जरा और अकाम निर्जरा के भेद से दो प्रकार की है।
शंका - निर्जरा और मोक्ष में क्या अन्तर है ?
समाधान - आंशिक - देश से कर्मों का क्षय होना निर्जरा है और आत्यंतिक सर्वथा कर्मों का क्षय हो जाना मोक्ष है।
एगे जीवे पाडिक्कएणं सरीरएणं। एगा जीवाणं अपरियाइत्ता विगुव्वणा। एगे मणे। एगा वई। एगे काय वायामे। एगा उप्पा। एगा वियई। एगा वियच्चा। एगा गई। एगा आगई। एगे चयणे। एगे उववाए। एगा तक्का। एगा सण्णा। एगा मण्णा। एगा विण्णू। एगा वेयणा। एगा छेयणा। एगा भेयणा। एगे मरणे अंतिमसारीरियाणं। एगे संसुद्धे अहाभूए पत्ते। एगे दुक्खे जीवाणं एगभूए। एगा अहम्मपडिमा जं से आया परिकिलेसइ। एगा धम्मपडिमा जं से आया पज्जवजाए। एगे मणे देवासुरमणुयाणं तंसि तंसि समयंसि। एगा वई देवासुरमणुयाणं तंसि तंसि समयंसि। एगे कायवायामे देवासुरमणुयाणं तंसि तंसि समयसि। एगे उट्ठाणकम्मबलवीरिय पुरिसकारपरक्कमे देवासुरमणुयाणं तंसि तंसि समयंसि। एगे णाणे, एंगे दंसणे, एगे चरित्ते ॥३॥ - कठिन शब्दार्थ - पाडिक्कएणं - प्रत्येक, सरीरएणं - शरीर में, विगुव्वणा - विकुर्वणा, कायवायामे - कायव्यायाम-शरीर का व्यापार, उप्पा - उत्पाद, वियई - विगति-विनाश, वियच्चा - विगतार्चा-मृतक शरीर, मण्णा - मति-बुद्धि, विष्णू - विज्ञ-विद्वान, छेयणा - छेदन, भेयणा - भेदन, अंतिम सारीरियाणं - अंतिम शरीरी, संसुद्धे - संशुद्ध-कषायों से रहित, अहाभूए - यथाभूततात्त्विक, परिकिलेसइ - क्लेश पाता है अहम्मपडिमा - अधर्म प्रतिमा, पजवजाए - पर्यवजात-शुद्ध, देवासुरमणुयाणं - देवों, असुरों एवं मनुष्यों को, तंसि - उस, समयंसि - समय में, उट्ठाणकम्मबलवीरिय - उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरिसकारपरक्कमे - पुरुषकार पराक्रम।
भावार्थ - प्रत्येक शरीर नामकर्म के उदय से प्रत्येक शरीर में एक जीव होता है। बाहरी पुद्गलों को न लेकर अपने अपने उत्पत्तिस्थान में जीवों की अर्थात् देवों की भवधारणीय वैक्रिय शरीर की रचना रूप विकुर्वणा एक है अर्थात् सब जीवों की अपने अपने शरीर की भवधारणीय विकुर्वणा एक है और बाहरी पुद्गलों को ग्रहण करके की जाने वाली रत्तर विक्रिया तो अनेक प्रकार की है। मन योग एक है। वचन योग एक है। शरीर का व्यापार एक है। एक समय में एक
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