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________________ २५० श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 ४. स्वरभङ्ग ५. आँख की पीड़ा ६. श्वास और ७. उदर व्यथा। उनको वे समभाव से सहन करने लगे यद्यपि उनको आमर्ष औषधि, खेलौषधि आदि अनेक लब्धियाँ प्राप्त हो गयी थी। वे उन लब्धियों के प्रभाव से उन रोगों को मिटा सकते थे परन्तु उन्होंने उन रोगों को समभाव पूर्वक सहन कर और. वेदना भोगकर कर्म क्षय करना चाहते थे। इसलिए समभाव पूर्वक सहन करते रहे। वे व्याधियाँ सात सौ वर्ष तक उनके शरीर में रही। एक लाख वर्ष तक प्रवज्या का पालन करके और सम्पूर्ण कर्मों का क्षय कर मोक्ष पधार गये। ४. अब इसके पश्चात् चौथी अन्तक्रिया का वर्णन किया जाता है। कोई जीव अल्पकर्मी होकर भवान्तर से आकर मनुष्य भव में जन्म लेता है। वह मुण्डित होकर यावत् प्रव्रज्या अङ्गीकार करता है। वह संयम युक्त यावत् कर्मों का क्षय करने वाला और शुभ ध्यान रूपी आभ्यन्तर तप करने वाला होता है। उसको तथाप्रकार का घोर तप नहीं करना होता है और तथाप्रकार की घोर वेदना भी सहन नहीं करनी होती है। इस तरह का पुरुष अल्प काल तक प्रव्रज्या का पालन करके ही सिद्ध हो जाता है यावत् सब दुःखों अन्त करता है। जैसे भगवती मरुदेवी माता। प्रथम तीर्थङ्कर श्री ऋषभदेव भगवान् की माता मरुदेवी ने न तो तप ही किया और न वेदना ही सहन की। हाथी के होदे पर केवलज्ञान उत्पन्न हो गया और वहीं आयु समाप्त हो जाने से मोक्ष प्राप्त किया। यह चौथी अन्तक्रिया है । विवेचन - तीसरे अध्ययन के तीसरे उद्देशक के अंतिम सूत्र में कर्म के चय आदि का वर्णन किया गया है। इस चौथे स्थानक के प्रथम उद्देशक के प्रथम सूत्र में भी कर्म और उसके कार्यभूत भव का अंत करने की क्रिया बतायी है। इस तरह दोनों सूत्रों का परस्पर संबंध है। ___कर्म अथवा कर्म कारणक भव का अन्त करना अंतक्रिया है। यों तो अन्तक्रिया एक ही स्वरूप वाली है। किन्तु सामग्री के भेद से उपरोक्तानुसार चार प्रकार की बताई गयी है। नोट - टीकाकार तो लिखते हैं कि सनत्कुमार चक्रवर्ती दीक्षा पर्याय का पालन करके तीसरे देवलोक में गये और फिर वहाँ से मनुष्य भव धारण कर फिर मोक्ष जायेंगे। परन्तु टीकाकर का यह लिखना आगम से मेल नहीं खाता है क्योंकि उत्तराध्ययन सूत्र के अठारहवें अध्ययन में दस चक्रवतियों का मोक्ष जाना बतलाया है और ठाणाङ्ग सूत्र के दूसरे ठाणे में सुभूम और ब्रह्मदत्त इन दो चक्रवर्तियों का नरक में जाना बतलाया है यदि तीसरे और चौथे चक्रवर्ती देवलोक में गये होते तो दूसरे ठाणे में उनका देवलोक में जाने का वर्णन कर देते। परन्तु वैसा वर्णन आगमों में किया नहीं है। आगम के आधार को लेकर पूज्य श्री जयमल जी म. सा. ने बड़ी साधु वन्दना में जोड़ा है यथा - वलि दशे चक्रवर्ती, राज्य, रमणी, ऋद्धि छोड़। दशे मुक्ति पहुँत्या, कुल ने शोभा चहोड़॥१९॥ इन सब प्रमाणों से स्पष्ट सिद्ध होता है कि सनत्कुमार चक्रवर्ती मोक्ष में गये हैं। अन्तक्रिया शब्द Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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