SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 262
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४५ __ स्थान ३ उद्देशक ४ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 गेविजविमाणपत्थडे, मज्झिममज्झिम-गेविजविमाणपत्थडे, मज्झिम उवरिम गेविजविमाणपत्थडे। उवरिमगेविजविमाण पत्थडे तिविहे पण्णत्ते तंजहा - उवरिम हिट्ठिम गेविजविमाण पत्थडे, उवरिममज्झिम गेविजविमाणपत्थडे, उवरिम उवरिम गेविजविमाण पत्थडे। जीवा णं तिट्ठाणणिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसु वा चिणिंति वा चिणिस्संति वा तंजहा - इत्थीणिव्वत्तिए पुरिसणिव्वत्तिए, णपुंसगणिव्यत्तिए। एवं चिण उवचिण बंध उदीर वेय तह णिज्जरा चेव। तिपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता, एवं जाव तिगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता॥१२४॥ ॥तिट्ठाणं समत्तं । तइयं अज्झयणं समत्तं।। कठिनशब्दार्थ - गेविज विमाणपत्थडा - ग्रैवेयक विमान प्रस्तट-ग्रैवेयक विमानों के पाथड़े, हिट्ठिम - अधस्तन, मज्झिम - मध्यम, उवरिम - ऊपरी, हिट्ठिम मज्झिम - अधस्तन मध्यम, हिट्ठिमउवरिम - अधस्तन उपरिम, मज्झिम उवरिम - मध्यम उपरिम उवरिम हिटिम. - उपरिम अधस्तन, तिट्ठाणणिव्वत्तिए - तीन स्थानों से उपार्जन किये गये, चय - संचय, उवचय - उपचय, बंध - बन्ध, उदीर - उदीरणा, वेय - वेदन, णिज्जरा - निर्जरा, तिपएसिया - त्रिप्रादेशिक, तिगुणलुक्खा - तीन गुण रूक्ष । भावार्थ - ग्रैवेयक विमानों की रचना तीन प्रकार की कही गई है अर्थात् नौ ग्रैवेयक विमानों की तीन त्रिक हैं यथा - अधस्तन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट यानी नीचे की त्रिक, मध्यम ग्रैवेयक विमान प्रस्तट यानी बीच की त्रिक और उपरिम ग्रैवेयक विमान प्रस्तट यानी ऊपर की त्रिक। अधस्तन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट यानी नीचे की त्रिक तीन प्रकार की कही गई है - __ यथा - अधस्तन अधस्तन विमान प्रस्तट यानी सब से नीचे का प्रतर जिसका नाम भद्र हैं, अधस्तनमध्यम ग्रैवेयक विमान प्रस्तट यानी नीचे की त्रिक का बीच का प्रतर जिसका नाम सुभद्र है और अधस्तन उपरिम ग्रैवेयक विमान प्रस्तट यानी नीचे की त्रिक का ऊपर का प्रतर। मध्यम ग्रैवेयक विमान प्रस्तट यानी बीच की त्रिक तीन प्रकार की कही गई है यथा - मध्यम अधस्तन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट यानी बीच वाली त्रिक का सब से नीचे का प्रतर जिसका नाम सुमनस है, मध्यम मध्यम ग्रैवेयक विमान प्रस्तट यानी बीच वाली त्रिक का बीच का प्रतर जिसका नाम सुदर्शन है और मध्यम उपरिम ग्रैवेयक विमान प्रस्तट यानी बीच वाली त्रिक का ऊपर का प्रतर जिसका नाम प्रियदर्शन है। उपरिम ग्रैवेयक विमान प्रस्तट यानी उपर. की त्रिक तीन प्रकार की कही गई है यथा - उपरिम अधस्तन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट यानी ऊपर वाली त्रिक का नीचे का प्रतर, जिसका नाम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy