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________________ २४४ श्री स्थानांग सूत्र जाने वाले पुरुष हुए, उसके बाद भरत क्षेत्र की अपेक्षा मोक्ष गमन बंद हो गया। जम्बूस्वामी के मोक्ष जाने पर दस बोलों का विच्छेद हो गया। . विशेषावश्यक भाष्य गाथा २५९३ में बतलाया गया है कि जम्बू स्वामी के मोक्ष जाने के बाद भरतक्षेत्र में दस बातों का विच्छेद हो गया। वह गाथा इस प्रकार है मण परमोहि पुलाए आहारग खवग उवसम कप्पो। संजम तिय केवली सिग्मणाय जम्बूम्भि वुचिछिण्णा॥ अर्थ - १. मनःपर्यय ज्ञान २. परम अवधिज्ञान ३. पुलाकलब्धि ४. आहारकलब्धि ५. क्षपक श्रेणी ६. उपशम श्रेणी ७. जिनकल्प ८. चारित्र त्रय अर्थात् परिहार विशुद्धि चारित्र, सूक्ष्मसम्पराय चारित्र और यथाख्यात चारित्र ९. केवलज्ञान १०. सिद्ध होना अर्थात् मोक्ष जाना। - जुगंतकरभूमी - युगांतकर भूमि - पुरुष युग की अपेक्षा अंतकर-भव का अंत करने वालों की अर्थात् मोक्ष गामियों की भूमि-काल वह युगांतकर भूमि कहलाती है। कहने का आशय है कि भगवान् महावीर स्वामी के तीर्थ में उनसे प्रारम्भ कर तीसरे पुरुष जंबूस्वामी पर्यंत मोक्ष मार्ग था, उसके बाद विच्छेद हुआ। ___"एगो भगवं वीरो पासो मल्ली य तिहिं तिहिं सएहिं" - भगवान् महावीर स्वामी ने एकाकीअकेले और पार्श्वनाथ स्वामी तथा मल्लिनाथ स्वामी ने तीन-तीन सौ पुरुषों के साथ दीक्षा ली। यहाँ पुरिससएहिं - 'पुरिस' शब्द व्यक्ति अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। इसलिए यहाँ प्रकरण के अनुसार 'स्त्री' अर्थ लिया गया है क्योंकि मल्लिनाथ भगवान् स्त्री पर्याय में तीर्थकर हुए थे इसलिए उनके साथ तीन सौ स्त्रियों ने दीक्षा ली थी। श्री शांतिनाथ, कुंथुनाथ और अरनाथ ये तीन तीर्थङ्कर चक्रवर्ती थे। जब तक ये तीन तीर्थङ्कर चक्रवर्ती नहीं बने तब तक ये मांडलिक राजा थे। शेष १९ तीर्थङ्कर मांडलिक राजा थे जबकि मल्लिनाथ स्वामी और नेमिनाथ स्वामी माडंलिक राजा भी नहीं थे। वासुपूज्य स्वामी, मल्लिनाथ, नेमिनाथ स्वामी, पार्श्वनाथ स्वामी और महावीर स्वामी इन पांच तीर्थंकरों ने राज्य नहीं भोगा। तओ गेविजविमाणपत्थडा पण्णत्ता तंजहा - हिट्ठिमगेविजविमाणपत्थडे मज्झिमगेविज विमाणपत्थडे उवरिमगेविजविमाणपत्थडे। हिट्ठिमगेविज्जविमाणपत्थडे तिविहे पण्णत्ते तंजहा - हिट्ठिमहिट्ठिमगेविजविमाणपत्थडे, हिटिममज्झिम-गेविज्जविमाणपत्थडे, हिट्ठिमउवरिमगेविजविमाणपत्थडे । मज्झिमगेविज्ज-विमाणपत्थडे तिविहे पण्णत्ते तंजहा - मज्झिमहिट्ठिम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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