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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 पण्णत्ते तंजहा - एगचक्खू, बिचक्खू, तिचक्खू। छउमत्थे णं मणुस्से एगचक्खू, देवे बिचक्खू, तहारूवे समणे वा माहणे वा उप्पण्णणाण दंसणधरे से णं तिचक्खू त्ति वत्तव्वं सिया तिविहे अभिसमागमे पण्णत्ते तंजहा-उड्डू, अहं, तिरियं, जया णं तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अइसेसे णाणदंसणे समुष्पग्जइ से णं तप्पढमयाए उड्डमभिमेइ तओ तिरियं, तओ पच्छा अहे, अहो लोए णं दुरभिगमे पण्णत्ते समणाउसो॥११६॥
कठिन शब्दार्थ - पोग्गल पडिघाए - पुद्गल प्रतिघात, पप्प - प्राप्त होने से, पडिहणिज्जा - प्रतिघात हो जाता है, लोगते - लोक के अंत में, चक्खू - आंख, छउमत्थे - छद्मस्थ, मणुस्से - मनुष्य, उप्पण्ण णाणदंसणधरे - उत्पन्न ज्ञान दर्शन के धारक-जिनको अवधिज्ञान अवधिदर्शन उत्पन्न हो गया है, अभिसमागमे - अभिसमागम-पदार्थों का सम्यग्ज्ञान, समुप्पजई - उत्पन्न होता है, तप्पढमयाए - राब से पहले, दुरभिगमे - देखना बडा कठिन है।
भावार्थ - तीन प्रकार के पुद्गल प्रतिघात कहे गये हैं यथा - एक परमाणु पुद्गल दूसरे परमाणु पुद्गल को प्राप्त होने से उसकी गति का प्रतिघात (रुकावट) हो जाता है, अत्यन्त रूक्ष हो जाने से उसकी गति का प्रतिघात हो जाता है और लोक के अन्त में जाने पर आगे धर्मास्तिकाय का अभाव होने से उसकी गति का प्रतिघात हो जाता है। तीन प्रकार की आंख कही गई है यथा - एक चक्षु, दो चक्षु
और तीन चक्षु । विशिष्ट श्रुतज्ञान रहित छद्मस्थ मनुष्य के चक्षुइन्द्रिय की अपेक्षा एक आंख होती है, देव के चक्षुइन्द्रिय और अवधिज्ञान होने से दो आंख होती है और जिसको अवधिज्ञान, अवधिदर्शन उत्पन्न हो गया है ऐसे तथारूप के श्रमण माहण के चक्षुइन्द्रिय, पस्मश्रुत और परम अवधिज्ञान ये तीन
आंखें होती हैं ऐसा कहना नाहिये। तीन प्रकार का अभिसमागम यानी पदार्थों का सम्यग्ज्ञान कहा गया है यथा - ऊर्ध्व, अधः (नीचे) और तिर्छ। जब तथारूप के श्रमण माहन को मति श्रुत से अतिरिक्त परम अवधि ज्ञान दर्शन उत्पन्न होता है तब वह सब से पहले ऊपर देखता है इसके बाद तिर्छा देखता है और इसके बाद अधोलोक को देखता है। भगवान् फरमाते हैं कि हे आयुष्मन् श्रमणो ! अधोलोक को देखना बड़ा कठिन है क्योंकि वह महा अन्धकार मय है।
विवेचन - पुद्गल प्रतिघात - परमाणु आदि पुद्गलों का प्रतिघात यानी गति की स्खलना पुद्गल प्रतिघात कहलाता है। पुद्गल प्रतिघात तीन प्रकार का कहा है - १. सूक्ष्म अणु रूप पुद्गल परमाणु पुद्गल है। एक परमाणु पुद्गल दूसरे परमाणु पुद्गल को प्राप्त होने से अटकता है - गति की स्खलना होती है २. रूक्षपन से अथवा तथाविध अन्य परिणाम द्वारा गति की स्खलना होती है ३. लोक के अंत में पुद्गल प्रतिघात होता है क्योंकि उसके आगे धर्मास्तिकाय का अभाव है।
चक्षु यानी नेत्र । जो द्रव्य से आंख और भाव से ज्ञान युक्त है वह चक्षुष-चक्षु वाला कहलाता है।
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