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________________ २२४ श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 जाति के देवों में किल्विषिक देव होते हैं। परन्तु उन सब का स्थान और स्थिति आदि एक समान नहीं होती है। इसलिए उनका अलग कथन नहीं किया गया है। यहाँ पर तीसरा ठाणां चलता है इसलिए सिर्फ वैमानिक जाति के किल्विषिक तीन प्रकार के प्रकार के देवों का कथन किया गया है। इनका स्थान और स्थिति एक समान होती है। ये वैमानिक जाति के किल्विषी देव हैं। . . सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो बाहिर परिसाए देवाणं तिण्णि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अभिंतरपरिसाए देवीणं तिणि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो बाहिरपरिसाए देवीणं तिण्णि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता॥१०७॥ कठिन शब्दार्थ - देवरण्णो - देवों के राजा के, देविंदस्स - देवों के इन्द्र के, सक्कस्स - शक्रेन्द्र की, बाहिर परिसाए - बाहर की परिषदा के, अब्भिंतर परिसाए - आभ्यन्तर परिषदा के।। भावार्थ - देवों के राजा, देवों के इन्द्र शक्रेन्द्र की बाहर की परिषदा के देवों की स्थिति तीन पल्योपम की कही गई है। देवों के राजा देवों के इन्द्र शक्रेन्द्र की आभ्यन्तर परिषदा की देवियों की स्थिति तीन पल्योपम कही गई है। देवों के राजा देवों के इन्द्र ईशानेन्द्र की बाहरी परिषदा की देवियों की स्थिति तीन पल्योपम कही गई है। तिविहे पायच्छित्ते पण्णत्ते तंजहा - णाणपायच्छित्ते, दंसणपायच्छित्ते, चरित्त पायच्छित्ते। तओ अणुग्याइमा पण्णत्ता तंजहा - हत्थकम्मं करेमाणे, मेहुणं सेवेमाणे, राइभोयणं भुंजेमाणे। तओ पारंचिया पण्णत्ता तंजहा - दुदुपारंचिए, पमत्तपारंचिए, अण्णमण्णं करेमाणे पारंचिए। तओ अणवलुप्या पण्णत्ता तंजहा - साहम्मियाणं तेणं करेमाणे, अण्णधम्मियाणं तेणं करेमाणे, हत्थातालं दलयमाणे॥१०८॥ कठिन शब्दार्थ - अणुग्धाइमा - अनुद्घातिम, हत्थकम्मं - हस्त कर्म, करेमाणे - करने वाला, पारंचिया - पाराञ्चिक, दुपारंचिए - दुष्ट पाराञ्चिक, पमत्त पारंचिए - प्रमाद पाराञ्चिक, अणवटुप्पाअनवस्थाप्य, साहम्मियाणं - साधर्मिकों के, अण्णधम्मियाणं - अन्य धार्मिकों के। - भावार्थ - तीन प्रकार का प्रायश्चित्त कहा गया है। यथा - ज्ञान प्रायश्चित्त यानी ज्ञान के अतिचार आदि दोषों की शुद्धि के लिए किया जाने वाला प्रायश्चित्त, दर्शन के शङ्कित आदि दोषों की शुद्धि के लिए लिया जाने वाला प्रायश्चित्त सो दर्शन प्रायश्चित्त और चारित्र में लगे हुए दोषों की शुद्धि के लिए लिया जाने वाला प्रायश्चित्त सो चारित्र प्रायश्चित्त। तीन प्रकार के अनुद्घातिम कहे गये हैं। यथा - हस्तकर्म करने वाला, मैथुन सेवन करने वाला और रात्रिभोजन करने वाला। तीन प्रकार का पाराञ्चिक कहा गया है। यथा - दुष्ट पाराञ्चिक यानी गुरु की घात करने का इच्छुक तथा साध्वी के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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