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________________ - श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 कठिन शब्दार्थ - अहुणोववण्णे - तत्काल नवीन उत्पन्न हुआ, माणुस्सं - मनुष्य, लोगं - लोक में, हव्वं - शीघ्र, आगच्छित्तए - आने की, इच्छेज - इच्छा करता हैं, दिव्वेसु - दिव्य, कामभोगेसु- कामभोगों में मुच्छिए. - मूछित, गिद्धे - गृद्ध, गढिए - स्नेह बंधन में बंधा हुआ, अज्झोववण्णे - अत्यन्त आसक्त, आढाइ - आदर करता है, परियाणाइ - वस्तु रूप जानता, ठिपकप्पंस्थिति प्रकल्प, वोच्छिण्णे - टूट जाता है, संकंते - आसक्ति, कालधम्मुणा - काल धर्म से, पवत्ते - प्रवर्तक, थेरे - स्थविर, गणी - गणी, गणहरे - गणधर, गणावच्छेए - गणावच्छेदक, पभावेणंप्रभाव से, देविड्डी - देव ऋद्धि, देवजुई - देवद्युति, देवाणुभावे - देवानुभाव, लद्धे - उपार्जित किया है, पत्ते - प्राप्त हुआ है, अभिसमण्णागए - सन्मुख उपस्थित हुआ है चेइयं - ज्ञान रूप, अइदुक्करदुक्करकारए - अति दुष्कर दुष्कर क्रिया करने वाले, अणझोववण्णे - काम भोगों में अनासक्त, सुण्हा - पुत्रवधू, पाउब्भवामि - प्रकट होऊं, संचाएइ - समर्थ हो सकता है। ... भावार्थ - देवलोक में तत्काल नवीन उत्पन्न हुआ देव मनुष्य लोक में शीघ्र आने की इच्छा करता है किन्तु तीन कारणों से शीघ्र नहीं आ सकता है। यथा - देवलोक में तत्काल उत्पन्न हुआ देव दिव्य काम भोगों में मूछित, गृद्ध, उनके स्नेह बन्धन में बंधा हुआ और उनमें अत्यन्त आसक्त बना हुआ वह देव मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों का आदर नहीं करता, इनको वस्तुरूप भी नहीं जानता, इन से मुझे प्रयोजन है इस प्रकार इनके बन्धन में नहीं पड़ता। इनका नियाणा भी नहीं करता और स्थिति प्रकल्प भी नहीं करता है अर्थात् ये मेरे बहुत समय तक रहें ऐसा विचार भी नहीं करता है। देवलोक में तत्काल नवीन उत्पन्न हुए देव दिव्य कामभोगों में मूछित, गृद्ध, स्नेह बन्धन में बंधा हुआ और आसक्त बने हुए उस देव का मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों का प्रेम टूट जाता है और देव सम्बन्धी कामभोगों में आसक्ति हो जाती है। देवलोक में तत्काल नवीन उत्पन्न हुआ देव दिव्य कामभोगों में मूर्छित यावत् आसक्त हो जाता है। इसलिए उसको ऐसा विचार होता है कि मैं अपने परिवार के लोगों से मिलने के लिए इस समय में मनुष्य लोक में न जाऊँ किन्तु एक मुहूर्त यानी दो घड़ी बाद जाऊंगा। उस समय में यानी देवों की दो घड़ी बीतने में मनुष्य लोक का बहुत समय व्यतीत हो जाता है इसलिए यहाँ के अल्प आयु वाले मनुष्य काल धर्म से संयुक्त हो जाते हैं अर्थात् मर जाते हैं, फिर किनसे मिलने के लिए आवे ? इन तीन कारणों से देवलोक में तत्काल नवीन उत्पन्न हुआ देव मनुष्य लोक में शीघ्र आने की इच्छा करता है किन्तु शीघ्र आ नहीं सकता है। देवलोक में तत्काल नवीन उत्पन्न हुआ देव मनुष्य लोक में शीघ्र आने की इच्छा करता है वह तीन कारणों से शीघ्र आ सकता है। यथा - देवलोक में तत्काल नवीन उत्पन्न हुआ देव दिव्य कामभोगों में अमूछित, अगृद्ध, उनके बन्धन में न बंधे हुए और उनमें आसक्त न बने हुए उस देव को ऐसा विचार उत्पन्न होता है कि मनुष्य भव में उपदेश देने वाले मेरे आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर गणी, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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