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________________ १७२ ___ श्री स्थानांग सूत्र रहित निर्मर्याद-मर्यादा रहित और नवकारसी आदि प्रत्याख्यानों एवं पौषधोपवास से रहित हैं वे काल के समय काल करके अधोगति-सातवीं नरक के अप्रतिष्ठान नामक नरकावास में उत्पन्न होते हैं जैसे - चक्रवर्ती, मांडलिक राजा एवं पंचेन्द्रिय जीवों की घात करने वाले आदि। इससे विपरीत जो जीव सुशील, सुव्रती सद्गुणी मर्यादावान् एवं प्रत्याख्यान पौषधोपवास आदि करने वाले हैं वे सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न होते हैं जैसे - काम भोगों का त्याग करने वाले चक्रवर्ती आदि। ___जो चक्रवर्ती और उनके सेनापति प्राप्त काम भोगों को छोड़कर दीक्षा अंगीकार करते हैं। वे देवलोक अथवा मोक्ष में जाते हैं। प्रशास्ता अर्थात धर्माचार्य तो कामभोगों का त्याग करते हैं, और दीक्षा लेते हैं तभी वे धर्माचार्य कहलाते हैं। उनकी गति भी देवलोक अथवा मोक्ष है।' ... ____ यहां तीन प्रज्ञप्तियों (चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति और द्वीपसागर प्रज्ञप्ति) के लिए जो 'कालेणं अहिजंति' कहा है उसका अर्थ यह है कि ये तीन प्रज्ञप्तियां विशिष्ट योग्यता के अनुसार समय पर ही पढ़ाई जाती है। यहाँ पर कालिक उत्कालिक के विषय में कथन नहीं समझना चाहिये। ॥इति तीसरे स्थान का प्रथम उद्देशक समाप्त॥ तीसरे स्थान का दूसरा उद्देशक तिविहे लोए पण्णत्ते तंजहा - णामलोए ठवणालोए दव्वलोए। तिविहे लोए पण्णत्ते तंजहा - णाणलोए दंसणलोए चरित्तलोए। तिविहे लोए पण्णत्ते तंजहा - उडलोए अहोलोए तिरियलोए॥७५॥ कठिन शब्दार्थ - दव्यलोक - द्रव्य लोक। भावार्थ - तीन प्रकार के लोक कहे गये हैं यथा - नाम लोक, स्थापना लोक और पञ्चास्तिकाय पिण्डरूप सो द्रव्य लोक। तीन प्रकार का लोक कहा गया है यथा - ज्ञान लोक, दर्शन लोक और चारित्र लोक। क्षायिक और क्षायोपशमिक रूप होने से ये तीनों भावलोक हैं। तीन प्रकार का लोक कहा गया है यथा - ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और तिर्यग्लोक। विवेचन - ऊर्ध्वलोक देशोन सात रज्जू परिमाण है और अधोलोक सात रज्जू झाझेरा है तथा तिर्छा लोक अठारह सौ योजन परिमाण है। चमरस्स णं असुरिदस्स असुरकुमाररण्णे तओ परिसाओ पण्णत्ताओ तंजहा - समिया चंडा जाया, अब्भंतरिया समिया, मज्झिमा चंडा, बाहिरया जाया। चमरस्स णं असुरिदस्स असुरकुमाररण्णो सामाणियाणं देवाणं तओ परिसाओ पण्णत्ताओ तंजहा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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