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________________ १५२ श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 पण्णत्ता तंजहा - जलयरा थलयरा खेयरा (खहयरा)। मणुस्सपुरिसा तिविहा पण्णत्ता तंजहा- कम्मभूमिया अकम्मभूमिया अंतरदीविया। तिविहा णमुसगा पण्णत्ता तंजहा- णेरड्य णपुंसगा तिरिक्खजोणिय णपुंसगा मणुस्स णपुंसगा। तिरिक्खजोणिय णपुंसगा तिविहा पण्णत्ता तंजहा - जलयरा थलयरा खहयरा। मणुस्स णपुंसगा तिविहा पण्णत्ता तंजहा - कम्मभूमिया अकम्मभूमिया अंतरदीविया। तिविहा तिरिक्खजोणिया पण्णत्ता तंजहा - इत्थी पुरिसा णपुंसगा॥६३॥ कठिन शब्दार्थ - मच्छा - मच्छ, अंडया - अण्डज, पोयया - पोतज, सम्मुच्छिमा - सम्मूछिम, इत्थी - स्त्री, पुरिसा - पुरुष, णपुंसगा - नपुंसक, पक्खी - पक्षी उरपरिसप्पा - उरपरिसर्प, भुयपरिसप्पा - भुज परिसर्प, जलयरीओ - जलचरी, थलचरीओ - स्थलचरी, खहयरीओखेचरी, कम्मभूमिया - कर्मभूमिज, अकम्मभूमिया - अकर्म भूमिज, अंतरदीविया - अन्तरींपिक । भावार्थ - जल में रहने वाला मच्छ तीन प्रकार का कहा गया है। यथा - अण्डज यानी अण्डे. से उत्पन्न होने वाले, पोतज यानी थैली से उत्पन्न होने वाले और सम्मूछिम यानी बिना माता पिता के पैदा होने वाले। अण्डज मत्स्य तीन प्रकार के कहे गये हैं यथा - स्त्री, पुरुष और नपुंसक। पोतज मत्स्य तीन प्रकार के कहे.गये हैं। यथा - स्त्री, पुरुष और नपुंसक। पक्षी तीन प्रकार के कहे गये हैं यथा - अण्डज हंस आदि, पोतज चिमगादड़ आदि और सम्मूछिम खञ्जन आदि। अण्डज पक्षी तीन प्रकार का कहा गया है। यथा - स्त्री, पुरुष और नपुंसक। पोतज पक्षी तीन प्रकार के कहे गये हैं। यथा - स्त्री, पुरुष और नपुंसक। इसी प्रकार इस अभिलापक के अनुसार उरपरिसर्प यानी छाती के बल रेंग वाले सर्प आदि के भी स्त्री, पुरुष और. नपुंसक ये तीन भेद कह देने चाहिए। इसी प्रकार के भुजपरिसर्प यानी भुजा के बल रेंगने वाले चूहा, नौलिया आदि के भी स्त्री, पुरुष, नपुंसक ये तीन भेद कह देने चाहिए। इसी प्रकार तीन प्रकार की स्त्रियाँ कही गई हैं। यथा - तिर्यञ्च योनि की स्त्रियां, मनुष्यगति की स्त्रियाँ और देवयोनि की स्त्रियाँ। तिर्यञ्च योनि की स्त्रियाँ तीन प्रकार की कही गई हैं। यथा - जलचरी, स्थलचरी और खेचरी। मनुष्य गति की स्त्रियाँ तीन प्रकार की कही गई हैं। यथा - कर्म भूमि के मनुष्यों की स्त्रियाँ, अकर्म भूमि के मनुष्यों की स्त्रियाँ और अन्तरद्वीप के मनुष्यों की स्त्रियाँ । पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं। यथा - तिर्यञ्च योनि के पुरुष, मनुष्य गति के पुरुष और देवगति के पुरुष। तिर्यञ्च योनि के पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं। यथा - जलचर, स्थलचर और खेचर। मनुष्यगति के पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं यथा - भरतक्षेत्र आदि पन्द्रह कर्म भूमि में उत्पन्न हुए मनुष्य, देवकुरु आदि तीस अकर्मभूमि में उत्पन्न हुए मनुष्य और छप्पन अन्तरद्वीपों में उत्पन्न हुए मनुष्य। नपुंसक तीन प्रकार के कहे गये हैं। यथा - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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