________________
१५०
श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
तओ रुक्खा पण्णत्ता तंजहा - पत्तोवए फलोवए पुप्फोवए। एवामेव तओ पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - पत्तोवा रुक्खसमाणा पुष्फोवा रुक्खसमाणा फलोवा रुक्खसमाणा। तओ पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा- णामपुरिसे, ठवणापुरिसे दव्यपुरिसे। तओ पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा-णाणपुरिसे दंसणपुरिसे चरित्तपुरिसे। तओ पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - वेयपुरिसे चिंधपुरिसे अहिलावपुरिसे। तिविहा पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा-उत्तम पुरिसा मज्झिमपुरिसा जहण्णपुरिसा। उत्तमपुरिसा तिविहा पण्णत्ता तंजहाधम्म पुरिसा भोग पुरिसा कम्म पुरिसा। धम्मपुरिसा अरिहंता, भोगपुरिसा चक्कवट्टी, कम्मपुरिसा वासुदेवा। मज्झिमपुरिसा तिविहा पण्णत्ता तंजहा- उग्गा भोगा रायण्णा। जहण्ण पुरिसा तिविहा पण्णत्ता तंजहा - दासा, भयगा, भाइल्लगा॥६२॥ ___ कठिन शब्दार्थ - रुक्खा - वृक्ष, पत्तोवए - पत्तों वाला, फलोवए - फलों वाला, पुष्फोवएफूलों वाला, पुरिसजाया - पुरुषों का समूह, पत्तोवा रुक्खसमाणा - पत्तों वाले वृक्ष के समान, पुष्फोवा रुक्खसमाणा - फूलों वाले वृक्ष के समान, फलोवा रुक्खसमाणा - फलों वाले वृक्ष के समान, वेयपुरिसे - वेद पुरुष, चिंधपुरिसे - चिह्न पुरुष, अहिलावपुरिसे - अभिलाप पुरुष, धम्मपुरिसा- धर्मपुरुष, भोगपुस्सिा - भोग पुरुष, कम्मपुरिसा - कर्म पुरुष, उग्गा - उग्र, रायण्णा - राजन्य, भयगा- भूतक, भाइल्लगा - भागीदार।
__भावार्थ - तीन प्रकार के वृक्ष कहे गये हैं। यथा - पत्तों वाला, फलों वाला, फूलों वाला इसी प्रकार तीन प्रकार के पुरुष कहे गये हैं। यथा - पत्तों वाले वृक्ष के समान लोकोत्तर पुरुष जो सूत्र देते हैं। फूलों वाले वृक्ष के समान लोकोत्तर पुरुष जो अर्थ देते हैं और फलों वाले वृक्ष के समान लोकोत्तर पुरुष जो सूत्र और अर्थ दोनों देते हैं। तीन प्रकार के पुरुष कहे गये हैं। यथा - नाम पुरुष, स्थापना पुरुष और द्रव्यपुरुष । जो पुरुष रूप से उत्पन्न होगा। तीन प्रकार के पुरुष कहे गये हैं। यथा- । ज्ञान पुरुष, दर्शन पुरुष और चारित्रपुरुष। ये तीन भाव पुरुष हैं। तीन प्रकार के पुरुष कहे गये हैं। यथा - वेदपुरुष, जो पुरुष वेद का अनुभव करता है। चिह्न पुरुष यानी दाढी मूंछ आदि को धारण करने वाला, अभिलाप पुरुष यानी जो शब्द व्याकरण की दृष्टि से पुल्लिङ्ग हो, यथा - घड़ा, आम आदि । तीन प्रकार के पुरुष कहे गये हैं। यथा - उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष और जघन्य पुरुष। उत्तम पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं यथा - धर्मपुरुष यानी क्षायिक चारित्र आदि को उपार्जन करने वाले, भोग पुरुष यानी मनोहर शब्द आदि विषय भोगों में आसक्त रहने वाले और कर्मपुरुष यानी महारम्भ करके नरक का आयुष्य बांधने वाले। धर्म पुरुष अरिहन्त हैं। भोग पुरुष चक्रवर्ती और कर्म पुरुष वासुदेव होते हैं। मध्यम पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं। यथा - उग्र अर्थात् भगवान् ऋषभदेव के
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org