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स्थान २ उद्देशक ४
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उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र भी दो दो तारों वाले कहे गये हैं। इस मनुष्य क्षेत्र के अन्दर दो समुद्र कहे गये हैं यथा - लवण समुद्र और कालोदधि समुद्र । आठवां चक्रवर्ती सुभूम और बारहवां चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त ये दो चक्रवर्ती कामभोगों का त्याग न करने से यथा समय अपना आयुष्य पूर्ण करके सातवीं तमस्तमा नरक के अप्रतिष्ठान नामक नरकावास में नैरयिक रूप से उत्पन्न हुए हैं। वहाँ तेतीस सागरोपम की स्थिति है।
विवेचन - सत्य प्रवाद - जीवों के हित के लिये सत्य-संयम अथवा सत्य वचन है जिसमें ऐसे भेद सहित और प्रतिपक्ष सहित जो कहा जाता है वह सत्य प्रवाद, ऐसा जो पूर्व सर्व श्रुत से प्रथम रचित होने से सत्य प्रवाद पूर्व कहलाता है। १४ पूर्व में यह छठा पूर्व है जिसका प्रमाण छह पद अधिक एक करोड़ है। सत्य प्रवाद पूर्व की दो वस्तु है। अध्ययन आदि की तरह पूर्व का विभाग विशेष 'वस्तु' कहलाता है।
कामभोग-'काम्यन्ते इति कामा' - जो मन को रुचि कर होता है वह 'काम' कहलाता है। शब्द और रूप विषय काम है। जो भोगा जाता है वह 'भोग' है। गंध, रस और स्पर्श विषय भोग हैं। कामभोगों का त्याग करके दीक्षा नहीं लेने के कारण दो चक्रवर्ती अर्थात् आठवां चक्रवर्ती सुभूम
और बारहवां चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त मर कर ३३ सागरोपम की स्थिति वाली सातवीं नरक के अप्रतिष्ठान नामक नरकावास में उत्पन्न हुए हैं। इस आगम पाठ से यह सिद्ध होता है कि इस अवसर्पिणी काल के १२ चक्रवर्तियों में से इन दो चक्रवर्तियों को छोड़ कर शेष दस मोक्ष में गये। टीकाकार लिखते हैं कि तीसरा चक्रवर्ती मघवा और चौथा चक्रवर्ती सनत्कुमार, इन दोनों चक्रवर्तियों ने दीक्षा तो ली थी किन्तु उसी भव में मोक्ष में नहीं गये किन्तु दोनों चक्रवर्ती तीसरे देवलोक में गये हैं। किन्तु यह बात आगम से मेल नहीं खाती है। क्योंकि यदि ये मोक्ष न जाकर देवलोक में गये होते तो जिस प्रकार यहाँ द्विस्थान में सुभूम और ब्रह्मदत्त इन दो चक्रवर्तियों का नरक भ्रमण बतलाया वैसे ही मघवा और सनत्कुमार इन दोनों चक्रवर्तियों का स्वर्ग गमन बतला देते। परन्तु वैसा नहीं बतलाया है। तथा इसी स्थानांग सूत्र के चौथे ठाणे के पहले उद्देशक के पहले सूत्र में ही चार अंतक्रियाओं का वर्णन किया गया है। अन्तक्रिया का अर्थ है जो उसी भव में मोक्ष जावे। उसमें तीसरी अन्तक्रिया में सनत्कुमार चक्रवर्ती का नाम है।
उत्तराध्ययन सूत्र के १८वें अध्ययन में १० चक्रवर्तियों का मोक्ष गमन बतलाया गया है। इन सब उद्धरणों से स्पष्ट है कि मघवा और सनत्कुमार चक्रवर्ती भी मोक्ष गये हैं।
असुरिंद वज्जियाणं भवणवासीणं देवाणं देसूणाई दो पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। सोहम्मे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं दो सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। ईसाणे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं साइरेगाइं दो सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। सणंकुमारे कप्पे
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